Tufan Jhuka Sakta Nahin

Author: Sharaf Rashidov
Translator: Sudhir Kumar Mathur
Edition: 2007, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Tufan Jhuka Sakta Nahin
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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2007
Edition Year 2007, Ed. 1st
Pages 296p
Translator Sudhir Kumar Mathur
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Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 13.5 X 1.5
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Sharaf Rashidov

Author: Sharaf Rashidov

शराफ़ रशीदोविच

जन्म : 6 नवम्बर, (पुराने कैलेंडर के अनुसार 24 अक्टूबर), 1917; झिजाक, उज़्बेकिस्तान।

अक्टूबर क्रान्ति और उज़्बेक सोवियत गणराज्य की स्थापना के बाद उज़्बेक भूस्वामियों के बर्बर प्रभुत्व के ख़ात्मे, कृषि और उद्योग के विकास, सांस्कृतिक परिवर्तनों और स्त्रियों की मुक्ति जैसी समाजवाद की उपलब्धियों से तथा समाजवादी शिक्षा के प्रभाव में शराफ़ रशीदोव

कम्युनिज़्म की ओर आकृष्ट हुए। 1939 में वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। किसान परिवार में पैदा हुए रशीदोव ने समरकन्द स्थित उज़्बेक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय से 1941 में भाषाविज्ञान में स्नातक उपाधि हासिल की। इसके पूर्व 1935 से ही वे एक माध्यमिक विद्यालय में अध्यापक थे। 1937 से 1941 तक वे समरकन्द से प्रकाशित होनेवाले एक पार्टी अख़बार के सम्पादन से जुड़े रहे। 1941-42 के दौरान सोवियत सेना में शामिल होकर उन्होंने महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध में हिस्सा लिया।

1950 और 1959 में वे उज़्बेकिस्तान की सुप्रीम सोवियत के अध्यक्ष-मंडल के अध्यक्ष और सोवियत संघ की सुप्रीम सोवियत के अध्यक्ष-मंडल के उपाध्यक्ष चुने गए। मार्च, 1959 में

वे उज़्बेकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के प्रथम सचिव चुने गए। इस पद पर वे 1983 में अपनी मृत्यु के समय तक क़ाबिज़ रहे। इसके अतिरिक्त वे अनेक राजकीय एवं पार्टी पदों पर रहे।

रशीदोव की पहली पुस्तक 1945 में प्रकाशित एक कविता-संग्रह था। ‘विजेता’ उपन्यास 1951 में प्रकाशित हुआ। ‘विजेता’ की ही कहानी को और अधिक व्यापक विस्तार देते हुए उन्होंने अगला उपन्यास लिखा ‘तूफ़ान झुका सकता नहीं’ जो 1958 में प्रकाशित हुआ। उनका तीसरा उपन्यास ‘प्रचंड लहर’ 1964 में प्रकाशित हुआ जो फासीवाद-विरोधी देशभक्तिपूर्ण युद्ध के दौरान घरेलू मोर्चे पर सोवियत जनता के शीर्यपूर्ण संघर्ष को समर्पित है। 1956 में उनकी एक उपन्यासिका ‘कश्मीर का गीत' भी प्रकाशित हुई थी, जिसमें भारतीय जनता के मुक्ति संघर्ष का प्रसंग है। इसके अतिरिक्त उन्होंने समकालीन सोवियत साहित्य पर कुछ आलोचनात्मक लेख लिखे और भारी तादाद में राजनीतिक लेखन किया।

निधन : 1983; ताशकन्द।

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