‘त्रिकाल संध्या’ की कथा के केन्द्र में चक दौलतराम नाम के एक गाँव का सिर्फ़ एक दिन है। कथानक गाँव के उन वृद्धों के बारे में है जो अपनी उम्र के चलते अब गाँव की उत्पादन-प्रणाली के लिए अप्रासंगिक हो चुके हैं और उनका दिन गाँव के बाहर मौजूद एक नीम के पेड़ के नीचे बीतता है। उनके जीवन में ऐसा कुछ भी घटित नहीं होता जिसे महत्त्वपूर्ण कहा जा सके, फिर भी उनके जीवन में एक गति निहित है जो गाँव की जीवनधारा और वहाँ के सामाजिक रिश्तों के लिए बहुत अहम है।

उपन्यास के मुख्य पात्र इंदर को अफ़ीम की लत है जिसका उसे कोई पश्चात्ताप नहीं है, लेकिन गाँव की गतिविधियों से वह बेहद जुड़ाव महसूस करता है।

नीम का पेड़ जहाँ बूढ़ों की ठहरी हुई ज़िन्दगी के प्रतीक के तौर पर उपन्यास में आता है, वहीं गाँव के पास से गुज़रने वाली ट्रेन उन्हें गुज़रते वक़्त का भी आभास कराती है। जीवन की सन्ध्या में पहुँचे इन लोगों की स्थिति ज़िन्दगी और मौत के बीच का एक पड़ाव है जो लज्जा और ग्लानि के क्षणों में सुन्दर सिंह द्वारा की गई आत्महत्या के रूपक में अभिव्यक्त भी होती है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Paramjeet S. Judge

Author: Paramjeet S. Judge

परमजीत स. जज्ज     

6 नवम्बर, 1955 को जन्मे परमजीत स. जज्ज गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर में समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष (1991-95 तथा 2010-12) और कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन (2006-2008) रह चुके हैं। राजनीति, समाजशास्त्र और समाजशास्त्रीय सिद्धान्त में विशेषज्ञता प्राप्त श्री जज्ज सामाजिक आन्दोलनों के क्षेत्र में भी काम करते रहे हैं। इस क्षेत्र से सम्बद्ध उनकी पुस्तकें हैं—‘इन सरेक्शन टू एजिटेशन : द नक्सलाइट मूवमेंट इन पंजाब’ (1992), ‘टेरेरिज्म इन पंजाब : अंडरस्टैंडिंग ग्रासरूट्स रिएलिटी’ (1999—सहयोगी लेखन), ‘सोशल एंड पॉलिटिकल मूवमेंट्स : रीडिंग्स ऑन पंजाब’ (2000, सह-सम्पादन), ‘रिलीजन, आइडेंटिटी एंड नेशनहुड : द सिख मिलिटेंट मूवमेंट’ (2005)।

दलित सम्बन्धी विषयों पर भी व्यापक कार्य। अंग्रेज़ी में उपरोक्त पुस्तकों के अलावा पंजाबी में भी कई पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें शामिल हैं—‘प्रवास : सभ्याचारिक संकट’, ‘मैक्स वेबर’, ‘समाज वैज्ञानिक दृष्टिकोण अते सिद्धान्त’ आदि।

उपन्यासकार के रूप में इन्होंने ‘पीतू’, ‘तरकालां’, ‘अर्थ’, ‘पच्छान बदल गई’ और ‘बदले दी पतझर’ आदि रचनाओं से पंजाबी भाषा को समृद्ध किया है।

 

 

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