‘कविता वह समय है जिसे इतिहास देख भले ले पर दुहरा नहीं सकता’—
ये कुछ शब्द नए कवि आस्तीक वाजपेयी की कविता के हैं जो तुमुल कोलाहल-कलह के बीच कवि की आवाज़ में बचे रह गए उस समय की याद दिलाते हैं जिसमें पुराण और पुरखों की स्मृति बसी हुई है। इस कविता को पढ़ते हुए उस अग्रज समय का अहसास होता है जो जल्दी नहीं बीतता, स्मृति बनकर साथ-साथ चलता है और थर-थर काँपते वर्तमान में उस कवि-धीरज की तरह स्थिर बना रहता है जिसके सहारे कवि आस्तीक अपने काव्यारम्भ की देहरी पर यह पहचान लेते हैं कि मैं उसी से बना हूँ जो ढह जाता है। आस्तीक की कविता हमें फिर याद दिला रही है कि—‘जीत नहीं हार बचा लेती है अस्तित्व के छोर पर’। यह प्रश्नाकुल कविता है जो हमसे फिर पूछ रही है कि—‘इस दुनिया के राज़ कौन जानता है और यह दुनिया है किसकी?’ यह कविता इस प्रश्न से फिर सामना कर रही है कि—‘हमें क्यों इच्छाएँ इतनी अधिक मिलीं और कौशल इतना कम।’
इस नई कवि-व्यथा में डूबा साधते हुए संसार का सामना इस तरह होता है कि जैसे—बारिश के आँसू सूख चुके हैं, वे धरती को गीला नहीं करते। जैसे—गुस्सा, अहंकार और हठ ताल पर चन्द्रमा की प्रतिमा की तरह जगमगा रहे हैं। जैसे—यत्न, हिम्मत और सादगी की हवा आसमान में खो गई है—कवि आस्तीक अपनी कविता के समय के आईने में नए बाज़ार से घिरते जाते संसार का चेहरा दिखाते हुए हमसे कह रहे हैं कि जैसे—दूसरों की कल्पना के बाग़ीचे में उनकी इच्छाओं की दूब उखाड़कर अपनी इच्छाओं के पेड़ लगाए जा रहे हों। कवि आस्तीक दूसरों से कुछ कहना चाहते हैं पर इस समझ के साथ कि ये दूसरे कौन हैं। यह नया कवि हमें एक बार फिर सचेत कर रहा है कि ख़ुद की पैरवी करते हुए हम थक गए हैं और सब अकेले घूम रहे हैं भाषा की भीड़ में, अर्थ भाग गए हैं, शब्द ही हैं जो नए बन सकते हैं।
आस्तीक की कविता में बिना पाए खोने का दु:ख बार-बार करवट लेता है। इन कविताओं को पढ़ते हुए यह अनुभव होता है कि यह नया कवि दु:ख के भार से शब्दों पर पड़ गई सलवटों को अपनी अनुभूतियों के ताप से इस तरह सँवार लेता है कि शब्द नए लगने लगते हैं। आस्तीक अपनी एक कविता में कहते हैं कि मृत्यु ही पिछली शताब्दी की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है। ये कविताएँ पढ़ते हुए पाठकगण अनुभव करेंगे कि शब्दों को नया करके ही मृत्यु को टाला जा सकता है।
—ध्रुव शुक्ल
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2017 |
Edition Year | 2017, Ed. 1st |
Pages | 148p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |