Tata Steel Ka Romance

Author: R.M. Lala
Translator: Yugank Dhir
Editor: Editor One Name
Edition: 2008, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Tata Steel Ka Romance

‘टाटा परिवार’ की कहानी इतिहास ने ख़ुद अपने हाथों से लिखी। कोई सौ साल पहले जमशेतजी टाटा ने भारत के तत्कालीन राज्य सचिव लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टन से निवेदन किया था कि वे भारत का पहला इस्पात कारख़ाना शुरू करने में ब्रिटिश शासन की ओर से सहायता करें। इधर कुछ ही समय पहले टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी ने अपने पंजीकरण की सौवीं वर्षगाँठ पर एंग्लो-डच इस्पात कम्पनी ‘कोरस’ को खरीदा और इस तरह इतिहास का एक चक्र पूरा हुआ।

आर.एम. लाला ने अपनी इस पुस्तक में टाटा स्टील के सौ सालों के इतिहास का अन्वेषण किया है, जिसमें उन्होंने लौह अयस्क और कोकिंग कोल की तलाश में बैलगाड़ियों में जंगल-जंगल भटकने से लेकर, कम्पनी के मौजूदा विश्वस्तरीय स्वरूप का वर्णन किया है। इस क्रम में लेखक ने उन लोगों के साहस, दृष्टि और प्रतिबद्धता की अभी तक अनचीन्ही भावनाओं को स्वर दिया है जिन्होंने भारत की पहली आधुनिक औद्योगिक इकाई की रचना की। इस कहानी में आर.एम. लाला टाटा स्टील के सामने आई उन तमाम बाधाओं का जिक्र भी करते हैं जिनसे संघर्ष करते हुए कम्पनी ने आख़िरकार जीत हासिल की। इसमें वित्तीय संसाधनों की जद्दोजेहद, सरकारी नियंत्रणों के बावजूद आगे बढ़ने की हिम्मत, मज़दूरों के लिए मानवीय कार्य स्थितियाँ बनाने की कोशिशें, उदारीकरण के दौर में प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने का हौसला आदि तमाम पहलुओं को रेखांकित किया गया है।

दुर्लभ तथ्यात्मक सामग्री और चित्रों को समाहित कर लेखक ने इस पुस्तक को संग्रहणीय और पठनीय बना दिया है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 247p
Translator Yugank Dhir
Editor Editor One Name
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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R.M. Lala

Author: R.M. Lala

आर.एम. लाला

रूसी एम. लाला ने अपने कार्यकाल का प्रारम्भ 1948 में 19 वर्ष की आयु में पत्रकारिता से किया। 1959 में वे लन्दन में प्रथम भारतीय पुस्तक प्रकाशन-गृह के प्रबन्धक बने और 1964 में उन्होंने (राजमोहन गांधी के साथ मिलकर) ‘हिम्मत वीकली’ की नींव रखी, जिसका उन्होंने एक दशक तक सम्पादन किया। उनकी प्रथम पुस्तक ‘द क्रिएशन ऑफ़ वेल्थ’, 1981 में प्रकाशित हुई जिसका प्रकाशकीय एवं व्यावसायिक दोनों ही दृष्टि से अप्रत्याशित स्वागत हुआ। इसके बाद कई अन्य पुस्तकें आईं जिनमें ‘बियोंड द लास्ट ब्लू माउंटेन : ए लाइफ़ ऑफ़ जे.आर.डी. टाटा’ (1992), ‘सेलीब्रेशन ऑफ़ द सैल्स : लैटर्स फ्रॉम ए कैंसर सरवाइवर’ (1999), ‘ए टच ऑफ़ ग्रेटनेस : एनकाउंटर्स विद द ऐमिनेंट’ (2001), ‘फ़ॉर द लव ऑफ़ इंडिया : द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ जमशेत जी टाटा’ (2004), ‘इन सर्च ऑफ़ इथिकल लीडरशिप’ (2005) और ‘रोमांस ऑफ़ टाटा स्टील’ (2007) सम्मिलित हैं।

रूसी एम. लाला की पुस्तकों का अन्य भाषाओं, जिनमें जापानी भी शामिल है, अनुवाद हो चुका है। वे अठारह वर्षों तक टाटाओं के प्रमुख न्यास, सरदोराब जी टाटा ट्रस्ट के निदेशक रहे। वे सेंटर फ़ॉर एडवांसमेंट ऑफ़ फ़िलेन्थ्रॉपी के सह-संस्थापक रहे, और 1993 से इसके अध्यक्ष हैं।

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