‘टाटा परिवार’ की कहानी इतिहास ने ख़ुद अपने हाथों से लिखी। कोई सौ साल पहले जमशेतजी टाटा ने भारत के तत्कालीन राज्य सचिव लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टन से निवेदन किया था कि वे भारत का पहला इस्पात कारख़ाना शुरू करने में ब्रिटिश शासन की ओर से सहायता करें। इधर कुछ ही समय पहले टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी ने अपने पंजीकरण की सौवीं वर्षगाँठ पर एंग्लो-डच इस्पात कम्पनी ‘कोरस’ को खरीदा और इस तरह इतिहास का एक चक्र पूरा हुआ।
आर.एम. लाला ने अपनी इस पुस्तक में टाटा स्टील के सौ सालों के इतिहास का अन्वेषण किया है, जिसमें उन्होंने लौह अयस्क और कोकिंग कोल की तलाश में बैलगाड़ियों में जंगल-जंगल भटकने से लेकर, कम्पनी के मौजूदा विश्वस्तरीय स्वरूप का वर्णन किया है। इस क्रम में लेखक ने उन लोगों के साहस, दृष्टि और प्रतिबद्धता की अभी तक अनचीन्ही भावनाओं को स्वर दिया है जिन्होंने भारत की पहली आधुनिक औद्योगिक इकाई की रचना की। इस कहानी में आर.एम. लाला टाटा स्टील के सामने आई उन तमाम बाधाओं का जिक्र भी करते हैं जिनसे संघर्ष करते हुए कम्पनी ने आख़िरकार जीत हासिल की। इसमें वित्तीय संसाधनों की जद्दोजेहद, सरकारी नियंत्रणों के बावजूद आगे बढ़ने की हिम्मत, मज़दूरों के लिए मानवीय कार्य स्थितियाँ बनाने की कोशिशें, उदारीकरण के दौर में प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने का हौसला आदि तमाम पहलुओं को रेखांकित किया गया है।
दुर्लभ तथ्यात्मक सामग्री और चित्रों को समाहित कर लेखक ने इस पुस्तक को संग्रहणीय और पठनीय बना दिया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Yugank Dhir |
Editor | Editor One Name |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2008, Ed. 1st |
Pages | 247p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2 |