Bharat Se Pyar

Author: R.M. Lala
Translator: Kamta Prasad
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Bharat Se Pyar

जमशेत जी नुसीरवान जी टाटा का जन्म 1889 में हुआ था। उनके जीवनकाल में भारत अंग्रेज़ों के शिकंजे में कसा रहा। फिर भी उनके द्वारा परिकल्पित परियोजनाएँ देश के आज़ाद हो जाने पर उसके विकास का आधार बनीं। अपनी प्रकृति से असाधारण होते हुए भी ये संस्थान अपने-अपने क्षेत्रों में दूसरों के लिए आदर्श बने हुए हैं। उनकी ढेर सारी उपलब्धियों में देश के कुछ बेहतरीन वैज्ञानिकों को तैयार करनेवाला बेंगलूर का इंडियन इंस्टीट्‌यूट ऑफ़ साइंस; जमशेदपुर स्थित टाटा इस्पात संयंत्र, जो कि देश के व्यापार से विनिर्माण में संक्रमण करने का द्योतक है; उनकी पथ-प्रदर्शक पनबिजली परियोजना और दुनिया के लाजवाब होटलों में से एक मुम्बई का ताजमहल होटल शामिल है।

अपने हाथ में लिए अन्य कामों की भाँति जमशेत जी ने इन परियोजनाओं में एक ऐसे व्यक्ति की अमोघ नैसर्गिक वृत्ति को प्रकट किया जिसे पता था कि पराधीन राष्ट्र के गौरव की बहाली कैसे की जाए। उन्होंने देश की आज़ादी के बाद उसे दुनिया के अग्रणी राष्ट्रों में स्थान पाने में मदद की।

ये परियोजनाएँ जिस बड़े पैमाने की थीं, उसके लिए बहुत दम-गुर्दे की आवश्यकता थी। कुछ मामलों में तो बस लगे रहने की ज़िद थी जो कि रंग लाई—जैसे कि इस्पात परियोजना के लिए उपयुक्त जगह की तलाश करने का मामला असीम धैर्य के कारण हल हुआ। दूसरे मामलों में, जैसे—इंडियन इंस्टीट्‌यूट ऑफ़ साइंस में मान-मनुहार करने का उनका लाजवाब कौशल और धैर्य ही था जिसने आख़िरकार शंकालु वाइसराय लॉर्ड कर्जन से उन्हें मंजूरी दिलवाई।

‘भारत से प्यार’ में आर.एम. लाला ने जमशेत जी और उनके समय के जीवन्त चित्रण के लिए लन्दन की इंडिया ऑफ़िस लाइब्रेरी और दूसरे अभिलेखागारों की नवीन सामग्री के साथ-साथ उनके पत्रों का उपयोग किया। यह एक महत्त्वपूर्ण लेखा-जोखा है जो स्पष्ट कर देता है कि जशमेत जी की उपलब्धि वाक़ई मानीखेज़ थी और उनकी मृत्यु के सौ साल बाद भी ऐसा क्यों जान पड़ता है कि वे अपने समय से बहुत आगे थे।      

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2006, Ed. 1st
Pages 268p
Translator Kamta Prasad
Editor Editor One Name
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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R.M. Lala

Author: R.M. Lala

आर.एम. लाला

रूसी एम. लाला ने अपने कार्यकाल का प्रारम्भ 1948 में 19 वर्ष की आयु में पत्रकारिता से किया। 1959 में वे लन्दन में प्रथम भारतीय पुस्तक प्रकाशन-गृह के प्रबन्धक बने और 1964 में उन्होंने (राजमोहन गांधी के साथ मिलकर) ‘हिम्मत वीकली’ की नींव रखी, जिसका उन्होंने एक दशक तक सम्पादन किया। उनकी प्रथम पुस्तक ‘द क्रिएशन ऑफ़ वेल्थ’, 1981 में प्रकाशित हुई जिसका प्रकाशकीय एवं व्यावसायिक दोनों ही दृष्टि से अप्रत्याशित स्वागत हुआ। इसके बाद कई अन्य पुस्तकें आईं जिनमें ‘बियोंड द लास्ट ब्लू माउंटेन : ए लाइफ़ ऑफ़ जे.आर.डी. टाटा’ (1992), ‘सेलीब्रेशन ऑफ़ द सैल्स : लैटर्स फ्रॉम ए कैंसर सरवाइवर’ (1999), ‘ए टच ऑफ़ ग्रेटनेस : एनकाउंटर्स विद द ऐमिनेंट’ (2001), ‘फ़ॉर द लव ऑफ़ इंडिया : द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ जमशेत जी टाटा’ (2004), ‘इन सर्च ऑफ़ इथिकल लीडरशिप’ (2005) और ‘रोमांस ऑफ़ टाटा स्टील’ (2007) सम्मिलित हैं।

रूसी एम. लाला की पुस्तकों का अन्य भाषाओं, जिनमें जापानी भी शामिल है, अनुवाद हो चुका है। वे अठारह वर्षों तक टाटाओं के प्रमुख न्यास, सरदोराब जी टाटा ट्रस्ट के निदेशक रहे। वे सेंटर फ़ॉर एडवांसमेंट ऑफ़ फ़िलेन्थ्रॉपी के सह-संस्थापक रहे, और 1993 से इसके अध्यक्ष हैं।

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