Tapaki Aur Bundi Ke Laddu

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Tapaki Aur Bundi Ke Laddu
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हिन्‍दी में 5-7 साल से 13-14 साल तक के बच्‍चों के लिए मनोरंजक लेकिन शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायी कहानियों का अभाव लगने पर मन हुआ कि कुछ लिखा जाए। आसपास जो कुछ भी पहले से रचा हुआ था, उस पर नज़री डाली तो कई सारी कमियाँ नज़र आईं, जैसे—अधिकतर किताबों या कार्टून सीरीज में कहानी का नायक लड़का है, लड़की नहीं। इसके अलावा दशकों पहले लिखी गई क‍हानियों से आज के दौर का बच्‍चा ख़ुद को जोड़ नहीं पाता, उनसे सीख नहीं पाता। आज के समाज के बच्‍चों की चुनौतियाँ भी अलग हैं। बच्‍चे खेल के मैदान में नहीं, मोबाइल फ़ोन के गेम में उलझे हैं। स्‍कूल सिर्फ़ उन्‍हें नौकरी पाने के तरीक़े सिखा रहा है, अच्‍छा इंसान बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं है। भला हो दिल्‍ली सरकार का जिसने अपने स्‍कूल के बच्‍चों के लिए हैप्‍पीनेस करिकुलम शुरू किया। बच्‍चों के लिए हिन्‍दी की कहानियों की उपलब्‍धता और उनकी आवश्‍यकताओं के बीच के अन्‍तर ने इस किताब को जन्‍म दिया।

—इसी पुस्‍तक से

 

टपकी और उसकी दिलचस्प दुनिया। इसमें हर बच्चा अपनी हिस्सेदारी महसूस करेगा और हर बड़ा इसमें दाख़िल होकर बच्चा हो जाना चाहेगा।    

—आबिद सुरती

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 84p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 28.5 X 22 X 1
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Dilip Pandey

Author: Dilip Pandey

दिलीप पांडेय

दिलीप पांडेय ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के छोटे-से क़स्बे जमानिया से अपनी स्नातक (अंग्रेज़ी एवं अर्थशास्त्र) की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उनका रुझान कम्प्यूटर की पढ़ाई की तरफ़ हुआ जिसे आगे बढ़ाते हुए उन्होंने राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से 2005 में एमसीए किया। वे किशोरावस्था से स्थानीय अख़बारों, पत्रिकाओं में लेख और कहानियाँ लिखते रहे और अपने क़स्बे के सामाजिक आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका भी निभाते रहे।

वर्षों तक देश-विदेश में प्रतिष्ठित आईटी कम्पनियों में काम करते हुए दर्जन-भर देशों की अलग-अलग संस्कृति, वेशभूषा से परिचय हुआ। अपने दो साल के हांगकांग प्रवास के दौरान दिलीप को भारत में अन्ना हजारे की अगुवाई में चल रहे ‘जन-लोकपाल आन्दोलन’ ने ख़ासा प्रभावित किया। इतना प्रभावित किया कि देश के लिए और ज्यादा करने की तड़प ने उन्हें भारत ला दिया। 32 साल की उम्र में नौकरी छोड़कर पत्नी व एक पुत्र (दो साल की अब एक पुत्री भी है) के साथ भारत आने का निर्णय काफ़ी मुश्किल रहा। और अब सामाजिक आन्दोलन का राजनीतिक वातावरण बनने के बाद संसद से लेकर सड़क तक के संघर्ष का वे अहम् हिस्सा हैं। इस संघर्ष को दिलीप ने जिया है, और निजी अनुभवों को, इतिहास के इस हिस्से को एक उपन्यास में दर्ज भी किया है।

भ्रष्टाचार से जमकर लोहा लेने की वजह से दिलीप पाण्डेय संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशंस) के भ्रष्टाचार विरोधी नॉन प्रॉफिट संस्थान ‘यूएनसीएसी’ के आजीवन सदस्य भी हैं। दिलीप की तीन किताबें (‘दहलीज पर दिल’, ‘खुलती-गिरहें’ एवं ‘कॉल सेंटर’ राजकमल प्रकाशन से) प्रकाशित हैं। वे खिलाड़ी हैं, तीरंदाजी (रिकर्व) में हिस्सा लेते हैं। 'राधिका प्रह्लाद फाउंडेशन' नाम से एक एनजीओ चलाते हैं, ग़रीब लोगों के इलाज में मदद करते हैं। कला-संस्कृति-संगीत में रुचि है, तो एक एनजीओ 'म्यूज़िक फ़ॉर ऑल’ भी चला रहे हैं, जो सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के बीच (फुटपाथ, झुग्गी-झोंपड़ी) और अनाथालयों में अपने म्यूज़िकल बैंड 'द फकीर कैफे’ के ज़रिए नि:शुल्क लाइव म्यूज़िकल इवेंट करते हैं। हिन्दी, उर्दू, भोजपुरी, संस्कृत, तेलुगू, अॅंग्रेज़ी, पंजाबी, बंगाली जैसी भाषाएँ बोल-समझ सकते हैं।

दिलीप 2019 के लोकसभा चुनाव में 'आम आदमी पार्टी’ की ओर से उत्तर-पूर्वी दिल्ली से उम्मीदवार थे। वर्तमान में वे 'आम आदमी पार्टी’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।

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