Surinam Ka Srijanatmak Hindi Sahitya

Edition: 2015, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Surinam Ka Srijanatmak Hindi Sahitya
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‘सूरीनाम का सृजनात्मक हिन्दी साहित्य' भारत से चौदह हज़ार चार सौ अट्ठारह किलोमीटर दूर दक्षिण अमरीका के उत्तरी-पश्चिमी शीर्ष पर कैरेबियन सागर के तट पर बसे सूरीनाम देश के प्रवासी भारतीयों की सृजनात्मक अभिव्यक्तियों का प्रामाणिक संकलन है। इस पुटक का पहला खंड सूरीनाम में हिन्दी के विकास और स्वरूप का परिचय देता है और सूरीनाम के सृजनात्मक साहित्य का एक संक्षिप्त अनुशीलन प्रस्तुत करता है। दूसरा खंड साहित्य संचयन का है जिसमें सूरीनाम के 27 प्रतिशत साहित्यकारों की विभिन्न विधाओं में लिखी रचनाएँ आपको पढ़ने को मिलेंगी। प्रस्तुत संकलन की एक विशिष्टता यह भी है कि इस संकलन में आपको सनामी हिन्दी की रचनाएँ पहली बार पढ़ने को मिलेंगी। भारत से हज़ारों मील दूर स्थित एक देश में लिखी ये रचनाएँ प्रवासी भारतीयों की संघर्ष-कथा का साहित्यिक दस्तावेज़ हैं जिनका ऐतिहासिक और समाजशास्त्रीय महत्त्व है। ये रचनाएँ हिन्दी के विश्‍वव्‍यापी स्वरूप का परिचय भी देती हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 1st
Pages 296p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Author: Vimlesh Kanti Verma

विमलेश कान्ति वर्मा

जन्म : 1943, इलाहाबाद।

डॉ. विमलेश कान्ति वर्मा लब्धप्रतिष्ठ भाषावैज्ञानिक हैं। लगभग पाँच दशकों से दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी भाषा और अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान का अध्यापन कर रहे हैं। आप रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड (लन्दन) के फेलो भी हैं। विदेश में हिन्दी के प्रचार-प्रसार से दीर्घकाल तक सम्बद्ध। टोरंटो विश्वविद्यालय, कनाडा, सोफिया विश्वविद्यालय, बल्गारिया तथा यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ पेसिफिक, फीजी में हिन्दी भाषा और साहित्य का अध्यापन तथा फीजी के भारतीय उच्चायोग में प्रथम सचिव (हिन्दी और शिक्षा) के पद पर हिन्दी की महती सेवा।

‘फीजी में हिन्दी : स्वरूप और विकास’ तथा ‘फीजी का सृजनात्मक हिन्दी साहित्य’ आपकी महत्त्वपूर्ण शोधपरक कृतियाँ हैं।

हिन्दी भाषा अध्ययन और अनुसंधान के क्षेत्र में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान को देखते हुए भारत के राष्ट्रपति उन्हें महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान तथा विदेश में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘हिन्दी विदेश प्रसार सम्मान’ दिया है। बल्गारिया और भारत के सांस्कृतिक सम्बन्धों को सुदृढ़ करने में उनके योगदान के लिए बल्गारिया की सरकार ने उन्हें-1300 बल्गारिया तथा क्लोंका लावरोवा पुरस्कार से सम्मानित किया है।

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