Suraj Chand Sitare, Naksh-A-Paa Hain Saare

Author: Syed Ali Kazim
Edition: 2011, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Suraj Chand Sitare, Naksh-A-Paa Hain Saare

अली काज़िम उर्दू के जवाँ-साल और जवाँ-फ़िक्र शायर हैं। शायरी उन्हें विरासत में मिली है।  मशहूर शायर और उस्ताद-ए-फ़न सैयद हसन काज़िम उरूज़ की तीसरी नस्ल में हैं। उनके वालिद महमूद काज़िम साहब ख़ुद एक अच्छे शायर और माहिर उरूज़ हैं। अली काज़िम की परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई, जहाँ दिन-रात शेर-ओ-अदब की चर्चा थी। उन्हें अदब का बहुत गहराई से मुतालअ करने का मौक़ा तो नहीं मिला, लेकिन घर की गुफ़्तगू और शोअरा की सोहबतों में अदब और शायरी का जो इल्म और शौक़ मिला, वो कम लोगों को नसीब होता है।

शायरी की दुनिया में अली काज़िम की ग़ज़लें तवातुर के साथ उर्दू अख़बारात और रेसायल में शाये होती रही हैं, जिससे उनकी ज़ूदगोई का अन्दाज़ा होता है। अली काज़िम की ग़ज़लों में एक ताज़गी और नयापन है, जिसे पढ़कर मुसर्रत का एहसास होता है :

“वो अकेला रात पर भारी पड़ा कल भी अली

शम्अ तारे चाँद सब रौशन रहे बेकार में।”

भारी पड़ने और बेकार में रौशन रहने में जो नजाकत, एहसास और ज़बान का लुत्फ़ है, वो बहुत ख़ूबसूरत है। इस तरह आम तौर पर उनके यहाँ इज़हार-ओ-बयान में कोई तसन्ना नहीं है। वो बड़ी सादगी और बेतक़ल्लुफ़ी से अपने जज़्बात और महसूसात को नज़्म कर देते हैं :

“रुसवाई हर क़दम पे मेरे साथ साथ थी

आवाज़ दे के तुम को बुला भी नहीं सका।”

(प्राक्‍कथन से)

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 215p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Syed Ali Kazim

Author: Syed Ali Kazim

अली काज़िम

जन्म : 20 अगस्त, 1974; इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश।

शिक्षा : इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बी.ए.। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ बैंकिंग एंड फ़ाइनेंस से जे.ए.आई. आई.बी.।

दादा स्वर्गीय हसन काज़िम ‘उरूज़’ एक अच्छे शायर और इल्म-ए-उरूज़ (छन्दशास्त्र) के विद्वान् थे। इल्म-ए-उरूज़ के क्षेत्र में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।

पिता श्री महमूद काज़िम भी एक प्रतिष्ठित शायर हैं जिनकी ग़ज़लों और नज़्मों का एक संग्रह ‘दरवाज़ा’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।

अली काज़िम की शायरी की शिक्षा अपने पिता की देखरेख में 1992 से आरम्भ हुई और लगभग सात वर्षों तक चली।

प्रकाशित रचनाएँ : ‘सूरज चाँद सितारे, नक्श-ए-पा हैं सारे’; ‘अब्आद-ए-सलासा’ (उर्दू में)।

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