Shudrak

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शूद्रक एक सफल और लोकप्रिय साहित्‍यकार तथा नाटककार थे। उनकी आम जनता की अभिरुचि और पहचान की पकड़ मज़बूत थी। इसीलिए वे संस्‍कृत हो या प्राकृत—उनकी लोकसमझ की आवश्‍यकता पर विशेष बल देते दिखते हैं।

शूद्रक के नाटकों में समाज को हू-ब-हू प्रस्‍तुत करने का सफल प्रयास है। उसके गुण-दोषों को उजागर किया गया है। चोर, जुआरी तथा निम्‍न वर्ग के लोग बुरे ही नहीं होते, उनमें अच्‍छाइयाँ भी होती हैं और अच्‍छा बनने की उनमें भी लालसा होती है। वे सब संगठित होकर सत्‍तापरिवर्तन तक कर सकते हैं, यदि उन्‍हें अच्‍छा मार्गदर्शन मिले तो अच्‍छाई का साथ देने के लिए वे सदा तत्‍पर रहते हैं।

शूद्रक के ‘मृच्छकटिक’ और ‘पद्मप्राभृतक’ दोनों नाटकों में विट है। विट गणिका-प्रिय और धूर्त होता है। ‘पद्मप्राभृतक’ में विट नायक ही है। परन्तु ‘मृच्छकटिक’ का विट शकार का पिछलग्गू है। वहाँ शकार की धूर्तता और चालबाजी के सामने विट काफी सीधा और फीका है। ‘पद्मप्राभृतक’ में विट समाज के हर वर्ग को आड़े हाथों लेता चलता है। परन्तु यहाँ भी उससे बढ़कर धूर्ताचार्य बताया गया है मूलदेव को, जिसका वह सहयोगी है। स्पष्ट ही शूद्रक के अनुसार विट धूर्त होने पर भी किसी बड़े धूर्ताचार्य का सहयोगी ही होता है। ये दोनों नाटक गणिका सम्बन्धी होने पर भी व्यापक सामाजिक सरोकार से परिपूर्ण हैं।

इस पुस्तक में ‘पद्मप्राभृतक’ का कुछ अंश, ‘मृच्छकटिक’ के दो अंक और ‘वीणावासदत्‍ता’ का एक अंक प्रस्तुत किया गया है।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 120p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Author: Bhagwatilal Rajpurohit

भगवतीलाल राजपुरोहित

जन्म : 2 नवम्बर, 1943; चन्दोड़िया, धार, (मध्य प्रदेश)।

शिक्षा : हिन्दी, संस्कृत तथा प्राचीन इतिहास में एम.ए., पीएच.डी.। डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित भारतीय विद्वत्परम्परा के अनन्य साधक, सर्जक और अनुसन्धाता रहे। साहित्य, संस्कृति, हिन्दी, मालवी में सतत लेखन करते रहे।

प्रमुख कृतियाँ : भारतीय कला और संस्कृति’, ‘भारतीय अभिलेख और इतिहास’, ‘राजा भोज’, ‘भारत के प्राचीन राजवंश’ (तीन भाग)पं. विश्वेश्वरनाथ रेउकृत का सम्पादन, ‘राजा भोज का रचनाविश्व’, ‘प्रतिभा भोजराजस्य’, ‘भोजराज’, ‘कालिदास’, ‘कालिदास का वागर्थ’, ‘उज्जयिनी और महाकाल’, ‘विद्योत्तमा’ (उपन्यास);वीणावासवदत्ता’ (हिन्दी में), ‘पद्यप्राभृतक’ (हिन्दी में), ‘सेज को सरोज’ (मालवी में), ‘हलकारो बादल’ (‘मेघदूत का मालवी में) का रूपान्‍तर;मालवी लोकगीत’ (सम्पादन-अनुवाद)।

सम्‍मान : मध्य प्रदेश संस्कृत अकादमी का भोज पुरस्कार (1984, 1990), म.प्र. उच्च शिक्षा अनुदान आयोग द्वारा डॉ. राधाकृष्णन सम्मान’ (1990, 1992), म.प्र. साहित्य परिषद् का बालकृष्ण शर्मा नवीनपुरस्कार (1988) आदि।

उज्जैन के सांदीपनि महाविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में आचार्य और अध्यक्ष रहे।

 

 

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