ललित सुरजन के साथ कहीं घूमने-फिरने का अनुभव अपने आपमें अनूठा है। वे हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि, पत्रकार, संवेदनशील चिन्तक तो हैं ही परन्तु इन सभी भूमिकाओं से बढ़कर एक सरल प्रकृति के दिलचस्प आदमी हैं जो तमाम जगहों में घूमते हैं और वहाँ की प्राकृतिक छटा, ऐतिहासिक वैभव और वर्तमान की तमाम तामीरों पर गौर करते हैं, और इससे भी ज़्यादा इन जगहों को आबाद करनेवाले लोगों के साथ एक सतत आशिकाना सलूक करते हुए चलते हैं।
साधारण-से-साधारण चीजशें या लोगों की मौजूदगी या बर्ताव से वे पूरे देश के एक होने को दर्शा देते हैं वहीं छोटी-से-छोटी जगहों में भी ऐसी विविधताएँ ढूँढ़ लेते हैं कि आप देखते रह जाते हैं। पूरी दुनिया की छोटी-बड़ी जगहें इस किताब में सजीव हो उठी हैं। इस संकलन में सम्मिलित सारे यात्रा-वृत्तान्त ‘देशबंधु’ में प्रकाशित हुए हैं। वे किसी जगह अकेले नहीं जाते हैं, अपने साथ लिये जाते हैं ‘देशबंधु’ के पाठकों को और उन पाठकों के माध्यम से जो भी हिन्दी-भाषी हैं, उन सभी को लगातार आमंत्रण देते हुए चलते हैं। ऐसा करते हुए वे अपने चिन्तक या कवि होने को कभी भी अपने नज़रिए या लेखन पर इस तरह हावी नहीं होने देते कि एक सामान्य पाठक का साथ छूट जाए या वे स्वयं किसी भी जगह पर जाने के मज़े से वंचित हो जाएँ। ये सारे वृत्तान्त बहुत ही मज़े में लिखे गए हैं। इस तरह का मज़े में लेखन हिन्दी में लगभग गायब हो गया है और ज़्यादातर लेखक कुछ-न-कुछ प्रमाणित करने में जुट गए हैं। ललित सबको केवल यह बताते हुए चलते हैं कि आसपास देखो, घूमो और तमाम जीती जा रही ज़िन्दगियों के साथ नए रिश्ते ढूँढ़ो क्योंकि कोई भी जगह महज़ पर्यटकों के लिए नहीं है, वहाँ साकिन लोगों के लिए रची या बसाई गई है। उनका विस्मय कभी ख़त्म नहीं होता। ललित सुरजन के साथ घूमकर चश्मे-हैराँ की हैरानी नहीं जाती।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2007 |
Edition Year | 2007, Ed. 1st |
Pages | 232p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 2 |