Shahar Aur Shikayaten

Edition: 2017, Ed. 1st
Language: English
Publisher: Radhakrishna Prakashan
Out of stock
SKU
Shahar Aur Shikayaten

प्रकृति की कविताएँ अपने समकालीनों से कई मायनों में अलग प्रतीत होती हैं। सबसे ज़्यादा ध्यान खींचती है उनकी भाषा की सहजता। वह एक ऐसी भाषा की रचना करती हैं जो अपने कथ्य के साथ-साथ अपनी सम्भावना को खोलती है। यह किसी और के द्वारा पहले सिद्ध कर ली गई भाषा नहीं है जिसे उन्होंने अपनी बात कहने के लिए प्रयोग करना शुरू कर दिया। यह भाषा कविता के साथ-साथ बनती है।

कथ्य इन कविताओं को कहीं भी मिल जाता है, अनुभव के संसार का कोई भी ऐसा तिनका जो अपनी लय से उखड़ा नज़र आए, उनकी कविता का विषय हो जाता है। जो चीज़ अलग से दिखाई देती है, वह यह कि इन कविताओं में पढ़ी हुई कविताओं की छवियाँ दिखाई नहीं देतीं। अपनी भाषा की तरह ये कविताएँ ज़मीन भी अपनी ही चुनती हैं। वह स्वाभाविक गति से अपना रास्ता तय करती हैं, प्राकृतिक ढंग से अपने आसपास के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं को आने देती हैं। एकदम अनलोडेड।

इन कविताओं के पास अपनी बहुत स्वाभाविक शिकायतें हैं जिनके जवाब उन्हें अपने समय और अपने समाज से चाहिए। वह न ख़ुद कोई विमर्श गढ़ती हैं न चाहती लगती हैं कि उन्हें जो जवाब दिए जाएँ वे 'फासिलाइज्ड' विमर्शों के निष्कर्ष हों।

ये बेचैनियाँ, असहमतियाँ, और उनसे उपजी ये कविताएँ हमें शुरू से शुरू करने के लिए आमंत्रित करती हैं। जैसे कह रही हों कि चीज़ों के हल देखने में अगर बहुत सुगठित, सुन्दर और ललित नहीं हैं तो भी चलेगा, पर उनका जीवन की लय को बदलने में सक्षम होना ज़रूरी है।

More Information
Language English
Binding Hard Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 112p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Shahar Aur Shikayaten
Your Rating
Prakriti Kargeti

Author: Prakriti Kargeti

प्रकृति करगेती

16 मार्च, 1991 में उत्तराखंड के ज़िला अल्मोड़ा के एक छोटे से गाँव ‘बसोट’ में जन्म। माँ (मोहनी करगेती) व पिता (त्रिलोचन करगेती) गाँव में कारोबार और खेती दोनों ही सँभालते हैं। बेहतर शिक्षा के लिए बच्चों को पढ़ने बाहर भेजा। प्रकृति, इसी के चलते रानीखेत, लखनऊ, दिल्ली और मुम्बई जैसे शहरों से सम्पर्क में आईं। गर्मियों की छुट्टियों में घर आना होता। इन्हीं छुट्टियों में माँ ने एक डायरी दी। कहा कि इन छुट्टियों में इस डायरी का सही इस्तेमाल करना। इशारा समझते हुए, उसी पर पहाड़ों के बीच और पहाड़ों के लिए ही पहली पाँच कविताएँ लिखीं।लिखने की इच्छा दिल्ली ले गई। दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक। कविताओं का सिलसिला जारी रखते हुए ‘हंस’, ‘जनसत्ता’, ‘आलोचना’, ‘शुक्रवार’, ‘जानकीपुल’, ‘पब्लिक एजेंडा’, ‘असुविधा’, ‘कल्पतरु एक्सप्रेस’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं, वेबसाइट व ब्लॉग में कविताएँ छपती रहीं।इस बीच कहानी लिखने का सिलसिला भी शुरू हुआ। ‘हंस’ के 2015 के जनवरी अंक में पहली बार कहानी छपी। शीर्षक था—‘ठहरे हुए से लोग’। यह अपने परिवेश को ध्यान में रखते हुए, पहली कहानी थी। इसी कहानी के लिए राजेन्द्र यादव ‘हंस कथा सम्मान—2015’ मिला। कुछ और कहानियाँ पाखी, आउटलुक, जानकीपुल, इंडियारी, लल्लनटॉप जैसी पत्रिकाओं व वेबसाइट में छपीं।स्नातक के बाद मीडिया से जुड़ी रही। बीबीसी हिन्दी, नेटवर्क 18, इंडिया टुडे में प्रोड्यूसर के रूप में कुछ साल काम। आजकल डिजिटल एजेंसी 'कल्चर मशीन’ में लेखक के रूप में कार्यरत। स्वतंत्र लेखन के अलावा, फ़िल्म और डिजिटल दुनिया के लिए लेखन।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top