Saundaryashastra Ke Tatva

Author: Kumar Vimal
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Saundaryashastra Ke Tatva

कविता के सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन की आवश्यकता इसलिए है कि वह न सिर्फ़ मनुष्य के सर्जनात्मक अन्तर्मन की एक रचनात्मक प्रक्रिया है, बल्कि उसकी संरचना में अन्य कलाओं के तत्त्व और गुण भी समाहित होते हैं। भारतीय काव्य-चेतना की परम्परा के अनुसार भी काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में कविता के कलात्मक अंश और काव्येतर तत्त्वों के समागम की अवहेलना नहीं की गई है। इसलिए ललित कलाओं की व्यापक पृष्ठभूमि में काव्य का तात्त्विक अध्ययन ज़रूरी है। इसी को कविता का सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन कहते हैं। लेकिन अनेक विद्वानों द्वारा समय-समय पर इस आवश्यकता को रेखांकित किए जाने के बावजूद हिन्दी आलोचना-साहित्य में अभी तक हम इस दिशा में छिटपुट निबन्धों, लेखों से आगे नहीं बढ़ सके हैं। जो काम सामान्यतः सामने आया है, वह अपेक्षित सौन्दर्यशास्त्रीय दृष्टिकोण और तात्त्विक विश्लेषण के अभाव के चलते सन्तोषजनक नहीं है।

यह पुस्तक हिन्दी साहित्य की उस कमी को पूरा करने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। इसमें सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन की अभी तक उपलब्ध परम्परा की पूर्वपीठिका में काव्य के प्रमुख तत्त्वों, यथा—सौन्दर्य, कल्पना, बिम्ब और प्रतीक का विशद और हृदयग्राही विवेचन किया गया है। अपने विषय में ‘प्रस्थान-ग्रन्थ’ बन सकने की क्षमतावाली इस पुस्तक में सौन्दर्यशास्त्र को व्यावहारिक आलोचना के धरातल पर उतारा गया है जिसका प्रमाण द्वितीय खंड में प्रस्तुत छायावादी कविता का सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन है।

इसकी दूसरी विशेषता है सौन्दर्यशास्त्र की स्वीकृत और अंगीकृत मान्यताओं के आधार पर काव्यशास्त्र की एक नई दिशा की ओर संकेत। कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ  कई दृष्टियों से ज्ञान की परिधि का विस्तार करता है और हिन्दी साहित्य में सौन्दर्यशास्त्रीय या कलाशास्त्रीय मान्यताओं के सहारे निष्पन्न एक ऐसे अद्यतन काव्यशास्त्र का रूप उपस्थित करता है, जिसमें परम्परागत प्रणालियों के अनुशीलन से आगे बढ़कर नवीन चिन्तन और आधुनिक वैज्ञानिक उद्भावनाओं का भी उपयोग किया गया है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1967
Edition Year 2017, Ed. 7th
Pages 306p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Kumar Vimal

Author: Kumar Vimal

कुमार विमल

जन्म : 12 अक्टूबर, 1931

साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ काव्य-रचना से हुआ। किन्तु, क्रमशः आलोचना में प्रवृत्ति रम गई। 1949 से ही हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, आलोचनात्मक निबन्धादि प्रकाशित होते रहे हैं।

पटना विश्वविद्यालय से सन् 1954 में एम.ए. (हिन्दी) और सन् 1964 में डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त की। बिहार लोक सेवा आयोग के सम्मानित सदस्य रहे। इसके पूर्व बिहार राष्ट्रभाषा-परिषद्, पटना के निदेशक पद पर कार्य कर चुके थे। इन्होंने बिहार सरकार द्वारा स्थापित साहित्यकार कलाकार-कल्याण कोष-परिषद् के आद्य सचिव के रूप में बिहार के अनेक साहित्यकारों और कलाकारों की उल्लेखनीय सेवा की। अध्यापन के प्रति सहज अनुराग रहा। विमल जी पटना विश्वविद्यालय में कई वर्षों तक हिन्दी के अध्यापक रहे।

सन् 1973 में इन्होंने राजकीय अतिथि के रूप में जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया और सोवियत रूस की सांस्कृतिक यात्रा की तथा यूरोप के अन्य कई देशों का भ्रमण किया। इनकी आलोचनात्मक कृतियाँ पुरस्कार-योजना समिति, उत्तर प्रदेश; बिहार राष्ट्रभाषा-परिषद् तथा हरजीमल डालमिया पुरस्कार समिति, दिल्ली द्वारा पुरस्कृत हो चुकी हैं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व’, ‘छायावाद का सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन, ‘मूल्य और मीमांसा’, ‘नई कविता, नई आलोचना और कला’, ‘साहित्य चिन्तन और मूल्यांकन’, ‘आलोचना और अनुशीलन’ आदि।

निधन : 26 नवम्बर, 2011

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