इस ग्रन्थ में सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन को एक नई दिशा दी गई है। अब तक हीगेल और क्रोचे जैसे प्रमुख पाश्चात्य विचारकों से लेकर दासगुप्त, मर्ढेकर और बारलिंगे जैसे भारतीय अध्येताओं तक ने सौन्दर्यशास्त्र का जो सैद्धान्तिक निरूपण किया था, उसे अग्रसर करते हुए इस ‘प्रस्थान-ग्रन्थ’ में सौन्दर्यशास्त्र को काव्यानुशीलन की दृष्टि से व्यापक आलोचना के धरातल पर उतारा गया है।
प्रस्तुत पुस्तक का ऐतिहासिक महत्त्व यह है कि इसके द्वारा पहली बार हिन्दी आलोचना-साहित्य में सौन्दर्यशास्त्रीय या कलाशास्त्रीय मान्यताओं के साहाय्य से निष्पन्न एक अद्यतन काव्यशास्त्र को उपस्थित किया गया है और उसके निकष पर छायावादी कविता के सौष्ठव का सटीक मूल्यांकन किया गया है।
हिन्दी साहित्य में व्यावहारिक आलोचना के धरातल पर अवतरित सौन्दर्यशास्त्र-विषयक यह पहला ग्रन्थ है, जिसके अन्तर्गत छायावादी कविता में न्यस्त सौन्दर्य, कल्पना, बिम्ब और प्रतीक जैसे प्रमुख कला-तत्त्वों का इतना सांगोपांग तथा प्रामाणिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। विद्वान् लेखक ने इस ग्रन्थ के माध्यम से पारम्परिक काव्यशास्त्र और आधुनिक आलोचना को एक व्यवस्थित सौन्दर्यशास्त्रीय आधार प्रदान कर ऐतिहात्सिक महत्त्व का कार्य किया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1970 |
Edition Year | 1996, Ed. 1st |
Pages | 263p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 2 |