Chhayawad Ka Saundraya Shashtriya Adhyayan

Author: Kumar Vimal
Edition: 1996, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Chhayawad Ka Saundraya Shashtriya Adhyayan

इस ग्रन्थ में सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन को एक नई दिशा दी गई है। अब तक हीगेल और क्रोचे जैसे प्रमुख पाश्चात्य विचारकों से लेकर दासगुप्त, मर्ढेकर और बारलिंगे जैसे भारतीय अध्येताओं तक ने सौन्दर्यशास्त्र का जो सैद्धान्तिक निरूपण किया था, उसे अग्रसर करते हुए इस ‘प्रस्थान-ग्रन्थ’ में सौन्दर्यशास्त्र को काव्यानुशीलन की दृष्टि से व्यापक आलोचना के धरातल पर उतारा गया है।

प्रस्तुत पुस्तक का ऐतिहासिक महत्त्व यह है कि इसके द्वारा पहली बार हिन्दी आलोचना-साहित्य में सौन्दर्यशास्त्रीय या कलाशास्त्रीय मान्यताओं के साहाय्य से निष्‍पन्‍न एक अद्यतन काव्यशास्त्र को उपस्थित किया गया है और उसके निकष पर छायावादी कविता के सौष्ठव का सटीक मूल्यांकन किया गया है।

हिन्दी साहित्य में व्यावहारिक आलोचना के धरातल पर अवतरित सौन्दर्यशास्त्र-विषयक यह पहला ग्रन्थ है, जिसके अन्तर्गत छायावादी कविता में न्यस्त सौन्दर्य, कल्पना, बिम्ब और प्रतीक जैसे प्रमुख कला-तत्‍त्‍वों का इतना सांगोपांग तथा प्रामाणिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। विद्वान् लेखक ने इस ग्रन्थ के माध्यम से पारम्परिक काव्यशास्त्र और आधुनिक आलोचना को एक व्यवस्थित सौन्दर्यशास्त्रीय आधार प्रदान कर ऐतिहात्सिक महत्त्व का कार्य किया है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1970
Edition Year 1996, Ed. 1st
Pages 263p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Kumar Vimal

Author: Kumar Vimal

कुमार विमल

जन्म : 12 अक्टूबर, 1931

साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ काव्य-रचना से हुआ। किन्तु, क्रमशः आलोचना में प्रवृत्ति रम गई। 1949 से ही हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, आलोचनात्मक निबन्धादि प्रकाशित होते रहे हैं।

पटना विश्वविद्यालय से सन् 1954 में एम.ए. (हिन्दी) और सन् 1964 में डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त की। बिहार लोक सेवा आयोग के सम्मानित सदस्य रहे। इसके पूर्व बिहार राष्ट्रभाषा-परिषद्, पटना के निदेशक पद पर कार्य कर चुके थे। इन्होंने बिहार सरकार द्वारा स्थापित साहित्यकार कलाकार-कल्याण कोष-परिषद् के आद्य सचिव के रूप में बिहार के अनेक साहित्यकारों और कलाकारों की उल्लेखनीय सेवा की। अध्यापन के प्रति सहज अनुराग रहा। विमल जी पटना विश्वविद्यालय में कई वर्षों तक हिन्दी के अध्यापक रहे।

सन् 1973 में इन्होंने राजकीय अतिथि के रूप में जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया और सोवियत रूस की सांस्कृतिक यात्रा की तथा यूरोप के अन्य कई देशों का भ्रमण किया। इनकी आलोचनात्मक कृतियाँ पुरस्कार-योजना समिति, उत्तर प्रदेश; बिहार राष्ट्रभाषा-परिषद् तथा हरजीमल डालमिया पुरस्कार समिति, दिल्ली द्वारा पुरस्कृत हो चुकी हैं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व’, ‘छायावाद का सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन, ‘मूल्य और मीमांसा’, ‘नई कविता, नई आलोचना और कला’, ‘साहित्य चिन्तन और मूल्यांकन’, ‘आलोचना और अनुशीलन’ आदि।

निधन : 26 नवम्बर, 2011

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