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Sant Raidas

Author: Yogendra Singh
Edition: 2015, Ed. 4th
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Sant Raidas

सन्त रैदास का मध्यकालीन हिन्दी भक्ति साहित्य के सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त शीर्ष कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। सन्त प्रवर की रचनाओं में जो स्फुट पद, साखियाँ तथा एक प्रबन्धात्मक रचना ‘प्रह्लाद चरित’ उपलब्ध हुए हैं, उन्हें पुस्तक में देने की चेष्टा की गई है।

सन्त रैदास को अपने समय में पर्याप्त सम्मान तथा ख्याति मिली, किन्तु उनका अन्त्यज वर्ग में जन्म लेना उनको लगातार सामाजिक यातना भी देता रहा। उनके जन्म के समय कुछ दन्तकथाएँ प्रचलित करके उनको पूर्व जन्म में ब्राह्मण सिद्ध करने की चेष्टा की गई। यह प्रयास भी उनके मूल कर्तव्य तथा सम्पूर्ण विचारधारा का प्रत्यावर्त्तन ही था। प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक ने इन सम्पूर्ण बिन्दुओं पर विचार प्रस्तुत करते हुए जहाँ सन्त रैदास के साहित्य की समाजेतिहासिक सन्दर्भों में समीक्षा प्रस्तुत की है वहीं इस ग्रन्थ में सन्त रैदास का साहित्यिक दृष्टि से मूल्यांकन भी प्रस्तुत किया है।

सामग्री को संकलित करने में लेखक को विभिन्न मठों, सम्बन्धित सम्प्रदाय के स्थलों, पुस्तकालयों तथा हस्तलिखित प्रतियों के संकलनकर्ताओं से सम्पर्क करना पड़ा और अनेक पाठ–भेद भी मिले। पाठ–भेदों को यथाशक्ति पाद–टिप्पणियों में देने की चेष्टा की गई है। छात्रों, अध्येताओं के लिए एक ज़रूरी पुस्तक।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 4th
Pages 186p
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Author: Yogendra Singh

योगेन्द्र सिंह

जन्म : इटावा (उ.प्र.)

शिक्षा : उच्च शिक्षा लखनऊ तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय।

1949-1977 तक हिन्दी विभागाध्यक्ष, कर्मक्षेत्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटावा। 1977 से 1994 तक प्राचार्य श्री चित्रगुप्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मैनपुरी। 1994 में सेवानिवृत्त।

प्राचार्य रूप में दोनों जनपदों (इटावा व मैनपुरी) में अच्छे प्रशासक की ख्याति, फलतः सेवानिवृत्ति के उपरान्त डॉ. भीमराव अम्बेडकर शिक्षा समिति, इटावा के द्वारा डॉ. भीमराव बौद्ध महाविद्यालय में संगठित करने के लिए समिति द्वारा सर्वसम्मति से प्राचार्यत्व हेतु आमंत्रित।

कविता मूल प्रवृत्ति रही। लगभग ढाई हज़ार पृष्ठ लिख डाले पर अव्यवस्थित, केवल एक संग्रह ‘निर्यालय’ प्रकाशित। अध्यापक के रूप में छात्रों की कठिनाई को ध्यान में रखते हुए हिन्दी के बदलते स्वरूप के सम्बन्ध में पुस्तक ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ आगरा विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित। बी.ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित।

बाल्यकाल से ही समाज-सेवा व सामाजिक न्याय-सम्बन्धी चिन्तन। फलतः ‘सन्त रैदास’ की सम्पूर्ण रचनाओं का देशभर में घूमकर संकलन। विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा पाठ्यक्रम में सम्मिलित। वोल्वर हैम्पटन (यू.के.) में अंग्रेज़ी में अनूदित।

 

 

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