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Samkalin Hindi Upanyas : Samay Se Sakshatkar

Edition: 2023, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Samkalin Hindi Upanyas : Samay Se Sakshatkar

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हिन्दी उपन्यास और साठोत्तरी भारतीय जीवन–सन्दर्भ विशिष्ट संवाद–सूत्रों के सहारे आपस में जुड़े हुए हैं। इस जुड़ाव का विस्तार जिन कृतियों में ख़ास तौर पर विद्यमान हैं, उनमें ‘राग दरबारी’, ‘महाभोज’ और ‘जहाँ बाँस फूलते हैं’ की पहचान सबसे अलग है। साठोत्तरी भारत का कड़वा और नंगा सच इन रचनाओं की विषयवस्तु का जनक है। अपने देश और समाज के साथ–साथ अपने समय की परख करने के लिए इन उपन्यासों तथा इनके जैसी आँच रखनेवाले कुछेक अन्य उपन्यासों का अध्ययन विश्लेषण अनिवार्य है।
डॉ. ई. विजयलक्ष्मी ने अपनी इस समीक्षा–पुस्तक में मुख्यत: दस साठोत्तरी उपन्यासों को अध्ययन का आधार

बनाया है और उनके सहारे अपने समय से साक्षात्कार का प्रयास किया है। उनके द्वारा चुने गए सभी उपन्यास महत्त्वपूर्ण लेखकों के हैं तथा लम्बे समय से चर्चा में रहे हैं। लेखिका ने उनके विश्लेषण व मूल्यांकन में उपलब्ध सामग्री का सदुपयोग किया है और अपने निजी अध्ययन से प्राप्त नवीन निष्कर्ष पाठकों तक पहुँचाने की कोशिश की है। डॉ. विजयलक्ष्मी का यह समीक्षा–ग्रन्थ अध्ययन की स्वस्थ एवं तटस्थ परम्परा की पहचान करानेवाला है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2006
Edition Year 2023, Ed. 3rd
Pages 246p
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Author: Dr. Alangvam Vijayalaxmi

एलाङम विजयलक्ष्मी

जन्म : 1971; मोइराङ्खोम, इम्फाल (मणिपुर)।

शिक्षा : प्राथमिक शिक्षा केन्द्रीय विद्यालय लम्फेल से। वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान से हिन्दी साहित्य में एम.ए. तथा मणिपुर विश्वविद्यालय से ‘प्रमुख साठोत्तरी हिन्दी उपन्यासों का अध्ययन’ विषय पर पीएच.डी.।

रचना-कर्म : साहित्य से प्रारम्भिक जीवन से ही लगाव। मौलिक लेखन, समीक्षा-परक लेखन आदि के साथ ही अनुवाद में विशेष रुचि। मान्यता यह कि अनुवाद के माध्यम से भाषायी व साहित्यिक समृद्धि तथा व्यापक सामाजिक संवाद के लिए ठोस कार्य किया जा सकता है। ‘भाषा’ तथा ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ में अनूदित कहानियों एवं कविताओं का प्रकाशन। मणिपुर से प्रकाशित हिन्दी पत्रिकाओं से जुड़कर साहित्य-सेवा का प्रयत्न। डॉ. चों. यामिनी देवी की कहानियों का अनुवाद—‘पर्वत के पार’ पुस्तकाकार प्रकाशित।

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