डॉ. सीताराम झा ‘श्याम’ विरचित ‘समय से आगे’ शीर्षक उपन्यास जितना ही रोचक है, उतना ही प्रेरक और प्रभावक भी। इसमें विशाल एवं विस्तृत सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा बौद्धिक-सांस्कृतिक पट-भूमि पर समग्र मानव जीवन का अभूतपूर्व चित्रण किया गया है। वस्तुतः, जीवन के सभी पक्ष अपनी परिपूर्णता में व्यंजित हैं। मानव प्रेम एवं प्रकृति-प्रेम में समवाय सम्बन्ध दिखाते हुए प्रेम को नया विस्तार प्रदान किया गया है, जो जीवन में आशा का संचार करता है, विकास की नई दिशाओं की तलाश के लिए नई दृष्टि प्रदान करता है—शोषण, उत्पीड़न, प्रपीड़न से मुक्त होने तथा समस्त प्राणियों को निर्भर रहने का अमर सन्देश देता है।

इस उपन्यास के कुछ पात्र—विभाकर, रंचना, नन्दिता, निदेश, चलित्तर, सुराजीदास, अनुपम आदि ऐसे हैं, जो धैर्य, साहस, आत्मबल, उत्साह, दूरदृष्टि, कर्मठता, दक्षता, ईमानदारी आदि मानवीय गुणों का उत्कृष्ट परिचय देकर जीवन को सफल-सार्थक बनाते हैं। इसके विपरीत, वल्लरी, सौदामिनी, पुरन्दर जैसे पात्र वर्तमान जीवन के संघर्षपूर्ण दौर में आगे बढ़ने के लिए छटपटाते तो हैं ज़रूर, पर उन्हें न तो आधार भूमि की परख है और न ही मंज़िल का पता। इसी से आगे बढ़ने की अमर्यादित इच्छा उनके वर्तमान को तो विनष्ट कर ही देती है, गौरवपूर्ण अतीत से भी प्रेरणा लेने के योग्य नहीं रहने देती। ऐसी स्थिति में प्रोज्ज्वल भविष्य के दर्शन का सुयोग कैसे मिल सकता है? उपन्यास का पहला ही वाक्य अद्भुत प्रकाश फैला देता है अतीत से भविष्य तक ‘व्यक्ति बहुत कुछ बन जाने की भाग-दौड़ में मनुष्य बनना ही भूल जाता है।’

डॉ. श्याम के इस उपन्यास में मानवीय संवेदना की अप्रतिम अभिव्यंजना है—निश्चल संवेदना की वह मार्मिक व्यंजना, जो मनुष्यता की अनिवार्य शर्त है, जिसके बिना जीवन नीरस और निरर्थक बन जाता है। सम्पूर्ण उपन्यास पढ़ जाने पर किसी को भी यह कहने में संकोच का अनुभव नहीं होगा कि ‘समय से आगे’ उपन्यास लेखन के क्षेत्र में नया प्रतिमान है।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2005
Edition Year 2005
Pages 207p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Sitaram Jha Shyam

सीताराम झा ‘श्याम’

आपने 1963 में बिहार विश्वविद्यालय से हिन्दी भाषा साहित्य में एम.ए. किया तथा स्वर्णपदक प्राप्त किया। पटना विश्वविद्यालय से 1967 में पीएच.डी. एवं 1972 में डी.लिट्. हुए। पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर तथा शोध-निर्देशक रहे।

आपकी प्रमुख कृतियों में ‘जिजीविषा’, ‘वर्तमान की पहचान’, ‘समय से आगे’ (उपन्यास); ‘ज़िन्दगी : नज़दीक से’, ‘नया आकाश’, ‘भागता अँधेरा’ (कहानी); ‘अस्तित्व बोध’, ‘हम भारत के पहरेदार’, ‘गीत अमृत के सुन्दर’ (कविता); ‘मातृभूमि’, ‘विजय-केतु’, ‘सही दिशा’, ‘नई मंज़िल’ (नाटक); ‘स्तरीय निबन्ध’ (निबन्ध); ‘भारत भ्रमण’, ‘भव्य भारत’, ‘विदेश-यात्रा के अनुभव’, ‘वेद विश्लेषण’ (यात्रा-वृत्तान्त); ‘विश्व शान्ति और सांस्कृतिक एकता’ (चिन्तन); ‘भाषा विज्ञान तथा हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक विश्लेषण’, ‘राजभाषा हिन्दी : प्रगामी प्रयोग’, ‘तुलसीदास : साहित्य और दायित्व दर्शन’, ‘कामायनी : आवर्त और अभिव्यंजना’, ‘अध्ययन और अन्तर्बोध’ ‘काव्यशास्त्र : चिन्तन और विवेचन’ (आलोचना); ‘भारतीय स्वातंत्र्य-संग्राम और हिन्दी उपन्यास’ (पीएच.डी.); ‘हिन्दी नाटक समाजशास्त्रीय अध्ययन’, (डी.लिट्., शोध-प्रबन्ध); ‘भारतीय समाज का स्वरूप’ (संस्कृति/समाजशास्त्र) आदि शामिल हैं।

आपकी विशेष उपलब्धियाँ हैं—‘श्याम-साहित्य के शिखर ग्रन्थ : संसार को भारत का सारस्वत अवदान’ जो राष्ट्रपति भवन में महामहिम डॉ. शंकरदयाल शर्मा द्वारा लोकार्पित; ‘नाटक और रंगमंच जो राष्ट्रपति भवन में महामहिम ज्ञानी जैलसिंह द्वारा लोकार्पित; ‘भारतीय स्वातंत्र्य-संग्राम की रूपरेखा’ जो नई दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लोकार्पित एवं ‘राष्ट्रीय चाणक्य पुरस्कार’ से सम्मानित।

 

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