Sab Likhni Kai Likhu Sansara : Padmavat Aur Jayasi Ki Duniya

Author: Mujeeb Rizvi
As low as ₹359.10 Regular Price ₹399.00
You Save 10%
In stock
Only %1 left
SKU
Sab Likhni Kai Likhu Sansara : Padmavat Aur Jayasi Ki Duniya
- +

कम-ओ-बेश पचास साल की मेहनत के बाद तैयार किया गया प्रोफ़ेसर मुजीब रिज़वी का ये शोध ग्रंथ जनता के सामने उस समय आ रहा है जब वो स्वयं इस दुनिया में नहीं रहे। सन् 1950 की दहाई में शुरू किए गए इस ग्रन्‍थ पर आख़िरकार 1979 में ‘अलीगढ़ यूनिवर्सिटी’ ने डॉक्टरेट की उपाधि दी थी। यह शोध-ग्रन्‍थ न सिर्फ़ मलिक मुहम्मद जायसी की तमाम रचनाओं का एक मौलिक विश्लेषण पेश करता है, अपितु वो हमें सूफ़ी साहित्य की बहुत-सी मान्यताओं और अभिव्यक्तियों से जायसी के माध्यम से पहली बार परिचित कराता है। मुजीब रिज़वी यह साबित कर देते हैं कि फ़ारसी और सूफ़ी साहित्य के ज्ञान के बिना जायसी को पढ़ना दुष्कर ही नहीं नामुमकिन भी है। जायसी का काव्य-संसार एक बेहतरीन संगम है जिसमें भारतीय काव्य, लोक, साहित्यिक, धार्मिक और भाषाई परिभाषाएँ अरबी-फ़ारसी रिवायतों से इस तरह समागम हैं कि एक को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।

सूफ़ी शब्दों में कहा जाए तो मुजीब रिज़वी ये दर्शाते हैं कि जायसी के रचना-संसार में फ़ारसी और भारतवर्ष की साहित्यिक-धार्मिक रिवायतें एक रूह दो कालिब हैं। निस्सन्देह जायसी की इस उत्कृष्टता को उजागर करने के लिए मुजीब रिज़वी जैसे बहुभाषीय, सहिष्णु और विलक्षण विद्वान की आवश्यकता थी जिसमें भक्ति-भाव, तसव्वुफ और साहित्य का विशिष्ट समागम हो। ये किताब जायसी, सूफ़ी प्रेमाख्यानों, अवधी संस्कृति और साहित्य की तमाम सम्भावनाओं को समेटे हुए उन विषयों पर हमारी समझ पर गहरा असर डालती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 350p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Sab Likhni Kai Likhu Sansara : Padmavat Aur Jayasi Ki Duniya
Your Rating
Mujeeb Rizvi

Author: Mujeeb Rizvi

मुजीब रिज़वी

मुजीब रिज़वी इलाहाबाद की मशहूर तहसील चयल के एक क़स्बे में 14 मई, 1934 को पैदा हुए। आरंभिक शिक्षा इलाहाबाद में हुई। स्नातक की डिग्री इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हासिल की। इस दौरान वो पंडित सुंदरलाल के सानिध्य में स्वतंत्रता आंदोलन और वामपंथी आंदोलनों एवं गतिविधियों में भी सक्रिय रहे। अलीगढ़ से हिंदी में एम.ए. करने के बाद उन्होंने 1960 की दहाई में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हिंदी विभाग की नींव डाली। उन्होंने जामिया और हिन्दी विभाग की बेशक़ीमत खिदमत की और अंततः एक्टिंग वाइस चांसलर होकर वहीं से सेवानिवृत्त हुए। सूफ़ी प्रेमाख्यानों पर उनके अनेक निबंध हैं और वे इस विषय के अद्भुत विशेषज्ञ थे। ‘सब लिखनी कै लिखु संसारा : पद्मावत और जायसी की दुनिया’ उनकी बहुचर्चित किताब है। जायसी, मीर अनीस, फ़िराक़, वैष्णव भक्ति, तुलसी, मुल्ला दाऊद, कबीर और दूसरे सूफ़ी-भक्ति विचारधारा के निर्गुण-सगुण कवियों पर उनके निबन्धों पर आधारित यह किताब ‘पीछे फिरत कहत कबीर कबीर’ 2009 में उर्दू में प्रकाशित हुई थी और अब पहली बार हिंदी में आ रही है। 24 मई, 2015 को उनका निधन हुआ।

 

Read More
Books by this Author
Back to Top