Saat Paise Tatha Anya Hugarian Kahaniyan

Fiction : Stories
Author: Moriez Zsigmond
Translator: Asghar Wajahat
Editor: Maria Najyaisi
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Saat Paise Tatha Anya Hugarian Kahaniyan

विख्यात हंगेरियन कथाकार मोरित्स जिग्मोन्द ने भारतीय ग्रामीण जीवन पर केन्द्रित एक वृत्तचित्र पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपने उपन्यास ‘रोजा शान्दोर अपने घोड़े को कुदाता है’ में लिखा था :

‘‘कल शाम को न्यूज़ सिनेमा में मैंने भारतीय लोगों का जीवन देखा। ऐसा लगा जैसे मैंने वही दृश्य देखा हो। घर में बनाए और सिले ढीले कपड़े पहनी औरतें, अधनंगे युवा और पूरी तरह नंगे बच्चे। ये सब बड़ी संख्या में साथ–साथ, धूप से बचने की कोशिश करते हुए, एक बड़े नारियल के पेड़ की छाया में लेटे थे। गंगा नदी में चलती नावों की छतें वैसी ही हैं जैसी हंगेरियन गाँवों की घोड़ा–गाड़ियों की छतें होती हैं। ये लोग उसी में जीवन बिता देते हैं। इसी तरह लगभग सौ साल पहले हंगेरियन दास रहते थे—नंगे पाँव; जैसे भारतीय अछूत। किसी के पाँव में चमड़े का जूता नहीं है। मुझे आश्चर्य हुआ कि ये लोग हंगेरियन जनता से कितने मिलते–जुलते हैं। इनके आचार–व्यवहार और भाव–भंगिमाएँ ऐसी थीं कि मुझे लगा कि मैं शायद बचपन के अपने भाइयों को देख रहा हूँ। मैंने अपनी माँ को भी पहचान लिया। अन्तर केवल इतना था कि हंगेरी में नाक की नथ कभी लोकप्रिय न थी।’’

भारतीय ग्रामीण जीवन के प्रति मोरित्स जिग्मोन्द की संवेदना दरअसल न केवल उनके साहित्य में व्यक्त हंगेरियन ग्रामीण जीवन का विस्तार है, बल्कि मोरित्स की सार्वभौमिकता की भी द्योतक है। मोरित्स की लगभग सभी कहानियाँ हंगेरियन जीवन पर आधारित हैं, लेकिन उनकी महान प्रतिभा ने बहुत व्यापक पाठक वर्ग का ध्यान आकर्षित किया है। संसार की सभी प्रमुख भाषाओं में अनूदित होकर उनकी रचनाएँ विश्व साहित्य की धरोहर बन चुकी हैं।

हिन्दी में मोरित्स की प्रसिद्ध कहानियों के इक्का–दुक्का अनुवाद मौजूद हैं। लेकिन ये सब अनुवाद अंग्रेज़ी के माध्यम से किए गए हैं। हंगेरियन और अंग्रेज़ी भाषा के बीच जो दूरी है, वैसी हिन्दी और हंगेरियन में नहीं है। इसका एक कारण हंगेरियन समाज और संस्कृति का ग्रामीणोन्मुखी होना है। हंगेरी के ग्रामीण जीवन की भाषा में ऐसे शब्दों की कमी नहीं है जिनके बहुत सटीक पर्याय हिन्दी में हैं। मोरित्स जिग्मोन्द की कहानियाँ पहली बार पुस्तकाकार हिन्दी में प्रकाशित कहानियाँ हैं जो पाठकों को अपनी तो लगेंगी ही, ताउम्र साथ भी रहेंगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2009
Edition Year 2009, Ed. 1st
Pages 127p
Translator Asghar Wajahat
Editor Maria Najyaisi
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Editorial Review

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Moriez Zsigmond

Author: Moriez Zsigmond

मोरित्स जिग्मोन्द

मोरित्स का जन्म 29 जून, 1879 को पूर्वी हंगेरी के तिसाचेचै गाँव में हुआ था। यह ईसाई धर्मप्रचारक पेटर और पाल का शुभ दिन माना जाता है। इस दिन का हंगेरियन ग्रामीण जीवन में बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसी दिन से फसल काटने का काम प्रारम्भ होता है।

1890 में मोरित्स जिग्मोन्द का नाम दैब्रैत्सैन के एक प्रसिद्ध प्रोटेस्टेंट स्कूल में लिखवाया गया। इसके बाद शारोशपतक के विख्यात प्रोटेस्टेंट स्कूल में दो साल पढ़ने के बाद वे 1897 में किशुयसाल्लाश के स्कूल में आ गए, जहाँ उनके एक मामा, पल्लगि जुला निदेशक थे। इसी स्कूल से 1899 में उन्होंने हायर सेकेंडरी परीक्षा पास कर ली। इसी वर्ष उन्होंने दैब्रैत्सैन विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र विभाग में प्रवेश लिया। आधा साल धर्मशास्त्र पढ़ने के बाद वे फिर क़ानून पढ़ने लगे।

1900 में मोरित्स जिग्मोन्द ने दैब्रैत्सैन विश्वविद्यालय छोड़ दिया और बुदापैश्त विश्वविद्यालय के क़ानून और कला संकाय में प्रवेश लिया। दो वर्ष बाद उनके माता-पिता भी गाँव से आकर बुदापैश्त के एक उपनगर में रहने लगे।

मोरित्स जिग्मोन्द की दर्जनों कहानियाँ और उपन्यास ग्रामीण जीवन के बहुआयामी और जटिल यथार्थ को सामने लाते हैं। उन्होंने अपने समय के ग्रामीण हंगेरियन समाज का बहुत विस्तार से सूक्ष्म और संवेदनशील चित्रण किया है। मोरित्स न केवल ग्रामीण जीवन का चित्रण करते हैं, बल्कि ग्रामीण जीवन के प्रति उनकी संवेदना और उनकी लगन भी गहरी है। मोरित्स अपने ग्रामीण परिवेश के प्रति न केवल प्रतिबद्ध हैं, बल्कि उनके साहित्य में ग्रामीण जीवन के प्रति विशेष आत्मीयता दिखाई पड़ती है। क्योंकि मोरित्स जिग्मोन्द एक गाँव में पैदा हुए थे और उनकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा भी गाँव में ही हुई थी। यही कारण है कि वे गाँव को न केवल अच्छी तरह समझते थे, बल्कि भावनात्मक स्तर पर अपने आपको ग्रामीण जीवन के निकट पाते थे।

निधन 9 अप्रैल, 1942 को बुदापैश्त में पक्षाघात से मोरित्स जिग्मोन्द की मृत्यु हुई।

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