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Moriez Zsigmond

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मोरित्स जिग्मोन्द

मोरित्स का जन्म 29 जून, 1879 को पूर्वी हंगेरी के तिसाचेचै गाँव में हुआ था। यह ईसाई धर्मप्रचारक पेटर और पाल का शुभ दिन माना जाता है। इस दिन का हंगेरियन ग्रामीण जीवन में बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसी दिन से फसल काटने का काम प्रारम्भ होता है।

1890 में मोरित्स जिग्मोन्द का नाम दैब्रैत्सैन के एक प्रसिद्ध प्रोटेस्टेंट स्कूल में लिखवाया गया। इसके बाद शारोशपतक के विख्यात प्रोटेस्टेंट स्कूल में दो साल पढ़ने के बाद वे 1897 में किशुयसाल्लाश के स्कूल में आ गए, जहाँ उनके एक मामा, पल्लगि जुला निदेशक थे। इसी स्कूल से 1899 में उन्होंने हायर सेकेंडरी परीक्षा पास कर ली। इसी वर्ष उन्होंने दैब्रैत्सैन विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र विभाग में प्रवेश लिया। आधा साल धर्मशास्त्र पढ़ने के बाद वे फिर क़ानून पढ़ने लगे।

1900 में मोरित्स जिग्मोन्द ने दैब्रैत्सैन विश्वविद्यालय छोड़ दिया और बुदापैश्त विश्वविद्यालय के क़ानून और कला संकाय में प्रवेश लिया। दो वर्ष बाद उनके माता-पिता भी गाँव से आकर बुदापैश्त के एक उपनगर में रहने लगे।

मोरित्स जिग्मोन्द की दर्जनों कहानियाँ और उपन्यास ग्रामीण जीवन के बहुआयामी और जटिल यथार्थ को सामने लाते हैं। उन्होंने अपने समय के ग्रामीण हंगेरियन समाज का बहुत विस्तार से सूक्ष्म और संवेदनशील चित्रण किया है। मोरित्स न केवल ग्रामीण जीवन का चित्रण करते हैं, बल्कि ग्रामीण जीवन के प्रति उनकी संवेदना और उनकी लगन भी गहरी है। मोरित्स अपने ग्रामीण परिवेश के प्रति न केवल प्रतिबद्ध हैं, बल्कि उनके साहित्य में ग्रामीण जीवन के प्रति विशेष आत्मीयता दिखाई पड़ती है। क्योंकि मोरित्स जिग्मोन्द एक गाँव में पैदा हुए थे और उनकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा भी गाँव में ही हुई थी। यही कारण है कि वे गाँव को न केवल अच्छी तरह समझते थे, बल्कि भावनात्मक स्तर पर अपने आपको ग्रामीण जीवन के निकट पाते थे।

निधन 9 अप्रैल, 1942 को बुदापैश्त में पक्षाघात से मोरित्स जिग्मोन्द की मृत्यु हुई।

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