Rupantar

Author: Radhakrishna
Edition: 2012, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Rupantar

‘रूपान्तर’ कथाकार राधाकृष्ण का एक विशिष्ट उपन्यास है। इसमें संस्कृति के कुछ दुर्लभ प्रसंगों के माध्यम से जीवन के गूढ़ रहस्यों को विश्लेषित किया गया है।

चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता का विविध आयामों में विकसित होता द्वन्द्वपूर्ण व्यक्तित्व उपन्यास का आकर्षण है। साथ ही तपस्वी सौभरि का विराग-योग जिस प्रकार परिवर्तित होता है, वह विस्मयपूर्ण है। इन दो चरित्रों का दो ध्रुवों पर स्थित चरित्र-चित्रण लेखक ने पूर्ण तन्मयता के साथ किया है।

मान्धाता का द्वन्द्व है—उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक की भूमि को अपने प्रबल पराक्रम से पददलित करनेवाले चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता की दारुण वेदना—अब किस पर विजय?

सौभरि की समस्या है—तपश्चर्या और साधना में शरीर को तृणवत् उपेक्षित करनेवाले ध्यान-योगी सौभरि का मानसिक द्वन्द्व, शरीर रसहीन क्यों नहीं हो पाता?

अत्यन्त विचारोत्तेजक उपन्यास।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1988
Edition Year 2012, Ed. 2nd
Pages 156P
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Radhakrishna

Author: Radhakrishna

राधाकृष्ण

राधाकृष्ण का जन्म 18 सितम्बर, 1910 को राँची के एक मध्यवित्त परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था में ही इनके पिता रामजतन लाल का निधन हो गया, अतः प्रारम्भिक जीवन बहुत कष्टपूर्ण रहा। स्कूली शिक्षा से अधिक इन्होंने जीवन की पाठशाला में अनुभव और ज्ञान अर्जित किया। राधाकृष्ण वस्तुतः स्वाध्याय और जन्मजात रचनात्मक प्रतिभा की उपज थे।

 

साहित्यकार राधाकृष्ण ने हिन्दी कथा साहित्य को शैली, स्वरूप और वस्तु की दृष्टि से एक नई और महत्त्वपूर्ण दिशा की ओर उन्मुख किया था। प्रेमचन्द जैसे कथा-सम्राट ने कथाकार राधाकृष्ण के सम्बन्ध में कहा था : ‘हिन्दी के उत्कृष्ट कथा-शिल्पियों की संख्या काट-छाँटकर पाँच भी कर दी जाए तो उनमें एक नाम राधाकृष्ण का होगा।’ राधाकृष्ण की पहचान प्रेमचन्द-धारा के एक लेखक के रूप में प्रेमचन्द के जीवन-काल में बन चुकी थी।

राधाकृष्ण ‘राधाकृष्ण’ और ‘घोष-बोस-बनर्जी-चटर्जी’ दो नामों से लिखा करते थे। घोष-बोस-बनर्जी-चटर्जी नाम से हास्य-व्यंग्य और राधाकृष्ण नाम से गम्भीर एवं अन्य विधागत रचनाएँ। राधाकृष्ण की पहली कहानी ‘सिन्हा साहब’ सन् 1929 की ‘हिन्दी गल्प माला’ में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद क्रमशः ‘महावीर’, ‘सन्देश’, ‘भविष्य’, ‘जन्मभूमि’, ‘हंस’, ‘माया’, ‘माधुरी’, ‘जागरण’ आदि प्रसिद्ध पत्रिकाओं में इनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहीं और देखते-देखते पूरे हिन्दी जगत में अप्रतिम कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इन्होंने ‘महावीर’, ‘हंस’, ‘माया’, ‘सन्देश’, ‘झारखंड’, ‘कहानी’, ‘आदिवासी’ आदि पत्रिकाओं का सम्पादन किया था।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : कहानी-संग्रह—‘रामलीला’, ‘सजला’, ‘गल्पिका’, ‘गेंद और गोल’, ‘चन्द्रगुप्त की तलवार’; उपन्यास—‘रूपान्तर’, ‘बोगस’, ‘सनसनाते सपने’, ‘इस देश को कौन जीत सकेगा’, ‘सपने बिकाऊ हैं’, ‘फुटपाथ’; नाटक—‘भारत छोड़ो’, ‘बिगड़ी हुई बात’, ‘वह देखो साँप’; बाल साहित्य—‘करम साँड़ की कहानी’, ‘भकोलवा’, ‘बागड़ बिल्ला’, ‘तीन दोस्त तीन क़िस्मत’ आदि।

निधन : 3 फरवरी, 1979

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