Rudra Rachanavali : Vols. 1-4

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Rudra Rachanavali : Vols. 1-4
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शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र' काशिकेय काशी के साहित्यकारों की गौरवशाली परम्परा के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। बहुआयामी व्यक्तित्व से सम्पन्न रुद्र जी उत्कृष्ट कवि, प्रखर कथाकार, सिद्धहस्त नाटककार, कुशल मंच अभिनेता, अध्येता, काशिका के उन्नायक यशस्वी पत्रकार एवं विशिष्ट सम्पादक के समवेत रूप थे।

रुद्र साहित्य पर ग़ौर करें तो पाते हैं कि उनकी काव्य-साधना एक दस्तावेज़ है। हिन्दी साहित्य में विशुद्ध हिन्दी ग़ज़ल-लेखन की एक मुकम्मल परम्परा रुद्र की ‘ग़ज़लिका' से ही प्रारम्भ होती है। इसमें हिन्दी की भावभूमि पर उर्दू का तर्ज़ेबयाँ मिलता है। लघु कलेवर में रचित ‘तुलसीदास' खंडकाव्य हो या गीत एवं विविध बोलियों में अनेक प्रकार की कविताएँ सभी अपने समय की जटिलताओं से टकराते एक भिन्न प्रकार के आस्वाद से परिचय कराते हैं।

एक गद्यकार के रूप में रुद्र जी अपनी उत्कृष्ट भाव-व्यंजना, विलक्षण शैली एवं मौलिक सर्जनात्मकता के कारण हिन्दी के प्रमुख गद्यकारों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनके गद्य में काव्यात्मक कल्पना-चारुता के साथ ही एक गत्यात्मक शिल्प-सौन्दर्य उपस्थित है जो उसकी उत्कृष्टता को द्योतित करता है। ग़ौरतलब है कि रुद्र जी सर्वप्रथम कवि रहे हैं, इसलिए उनका कवि-हृदय उनके समूचे साहित्य में प्रतिबिम्बित है। गद्य के सभी रूपों—उपन्यास, कहानी, नाटक, व्यंग्यालेख, निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र एवं समीक्षा को उन्होंने सफलता के साथ पुष्पित एवं पल्लवित किया है। इन सभी में उनका प्रत्युत्पन्नमतित्व, लोकसम्पृक्ति एवं स्थानीय रंगत विद्यमान है।

‘रुद्र रचनावली' को विधाओं के आधार पर चार खंडों में विभाजित किया गया है; जैसे—काव्य-साहित्य, गद्य-साहित्य, कथा-साहित्य एवं सम्पादित साहित्य। ‘रचनावली’ का यह पहला खंड काव्य-साहित्य पर केन्द्रित है। इसके अन्तर्गत ब्रजभाषा, खड़ी बोली, मिश्रित बोली, काशिका (बनारसी बोली) की कविताएँ हैं। इस खंड में रुद्र जी की प्रकाशित कविताओं के साथ कुछ अप्रकाशित कविताओं को भी सम्मिलित किया गया है। गीतों के अन्तर्गत उनके अप्रकाशित गीतों को रखा गया है। साथ ही, इस खंड में उनके चर्चित लघु खंडकाव्य ‘तुलसी', ग़ज़लों का संग्रह ‘ग़ज़लिका' एवं 'गीत गोविन्द' के काव्यानुवाद को क्रमवार रखा गया है।

यह ‘रचनावली' कई दृष्टियों से विशिष्ट है। पहला यह कि रुद्र जी के साहित्य का समग्रता में मूल्यांकन हो सके और दूसरा यह कि जिस ‘रुद्र’ को साहित्य-जगत में एकमात्र कृति 'बहती गंगा’ में समेटकर रख दिया गया है, इस मिथ को तोड़ा जा सके और जाना जा सके कि रुद्र जी ने हिन्दी साहित्य को अपनी लेखनी द्वारा अल्प समय में ही बहुत कुछ दिया है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 1212p
Translator Not Selected
Editor Meenakshi Mishra
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 10
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Shivprasad Mishra 'Rudra'

Author: Shivprasad Mishra 'Rudra'

शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’

 

जन्म : 27 सितम्बर, 1911; ज्ञानवापी, वाराणसी।

शिक्षा : बी.ए., एम.ए., बी.टी., काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।

कार्यक्षेत्र : ‘रॉबटर्सगंज’ के दुद्धी चोपन में इंस्पेक्टर ऑव स्कूल। दैनिक ‘आज’, ‘सन्मार्ग’, ‘संसार’, ‘नागरी’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन।

हरिश्चन्द्र कॉलेज, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में अध्यापन। काशी नागरीप्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री। रत्नाकर-रसिक मंडल, दीन सुकवि मंडल; लाला भगवानदीन साहित्य महाविद्यालय; अखिल भारतीय विक्रम परिषद्; हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग; भोजपुरी संसद; शनिवार गोष्ठी आदि संस्थानों में महत्त्वपूर्ण योगदान।

प्रमुख प्रकाशन : ‘बहती गंगा’, ‘सु-चि-ता-च’, ‘रामबोला रामबोले’ (उपन्यास); ‘ग़ज़लिका’ (ग़ज़ल-संग्रह); ‘तुलसीदास’ (लघु खंडकाव्य); ‘अध्यापन कला’ (शिक्षणशास्त्र); ‘महाकवि कालिदास’, ‘दशाश्वमेध’ (नाटक)। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, निबन्ध, लेख, संस्मरण, समीक्षाएँ आदि प्रकाशित। विभिन्न कृतियों का सम्पादन जिनमें ‘तेगअली काशिका’, ‘चीन को चेतावनी’, ‘भारतेन्दु ग्रन्थावली’, ‘सत्य हरिश्चन्द्र’, ‘छिताईवार्ता’, ‘हकायके हिन्दी’, ‘नाथसिद्धों की बानियाँ’, ‘रास और रासान्वयी काव्य’ आदि।

निधन : 31 अगस्त, 1970; वाराणसी।

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