‘रुदाली’ बांग्ला की विख्यात लेखिका महाश्वेता देवी की एक प्रसिद्ध कहानी पर आधारित नाटक है। अनेक मंचों पर सफलतापूर्वक खेले जा चुके इस नाट्य रूपांतर की लोकप्रियता आज भी उतनी ही है।
नाटक का केन्द्रीय चरित्र सनीचरी है जिसे शनिवार के दिन पैदा होने के कारण यह नाम मिला है और इसके साथ मिली हैं कुछ सजाएँ - समाज मानता है कि वह असगुनी है और इसीलिए उसके परिवार में कोई नहीं बच पाया। एक-एक करके सब काल की भेंट चढ़ गए।
लेकिन सनीचरी की आँखें कभी नम न हुईं। वह कभी नहीं रोई, जब बेटा मरा तब भी नहीं। लेकिन अंततः उसे रुदाली का काम करना पड़ता है, रुदाली यानी वह स्त्री जो भाड़े पर रोती है, मेहनताना लेकर मातम करती है।
एक पात्र के रूप में सनीचरी उस तबके का प्रतिनिधित्व करती है जिसके पास न चुनाव की स्वतंत्रता होती है, न निश्चिंत होने के साधन, लेकिन वह कभी टूटती नहीं, उसकी जिजीविषा बराबर उसके साथ होती है। वह अपना सहारा खुद बनती है, जो जाहिर है कि उसका अन्तिम विकल्प होता है।
समाज के निम्नतम वर्ग में स्त्री-जीवन की एक लोमहर्षक विडम्बना को रेखांकित करता यह नाटक शिल्प के स्तर पर भी एक सम्पूर्ण नाट्य-कृति है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2004 |
Edition Year | 2024, Ed. 3rd |
Pages | 104p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1 |