Registan Mein Jheel

Author: Anand Harshul
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Registan Mein Jheel
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आज के संचार प्रौद्योगिकी और आक्रामक उपभोक्तावाद के दौर में जब तमाम चीज़ें शोर, यांत्रिकता, बाज़ार, वस्तु-सनक, उन्माद और हाहाकार में ग़ायब होती जा रही हों—यहाँ तक कि मानवीय रिश्ते भी—प्रकृति और पर्यावरण भी—आनंद हर्षुल जैसे अपने धीमे, शान्त और अनोखे शिल्प से एक तरह का प्रतिवाद रचते हैं और यथार्थ तथा फन्तासी के मिश्रण का एक समानान्तर सौन्दर्यशास्त्र रचते हैं। बग़ैर घोषित किए उनकी कहानियाँ उत्तर-आधुनिक होकर भी स्मृतिहीनता के विरुद्ध हैं।

आनंद हर्षुल की कहानियाँ पढ़ते हुए अनुभव किया जा सकता है कि यथार्थ के समाजशास्त्रीय ज्ञान के आतंक में इन दिनों कहानी के गद्य में जिस सघन ऐन्द्रिकता और एक तरह की अबोधता का अकाल है, आनंद हर्षुल उन पर सबसे ज़्यादा भरोसा करते हैं, इसलिए जो चीज़ें अक्सर लोगों को जड़ स्थिर दिखाई देती हैं, वे यहाँ साँस लेती हैं। आनंद हर्षुल का सघन ऐन्द्रिकता और अबोधता पर भरोसा एक सार्थक प्रतिवाद है।

—परमानन्द श्रीवास्तव

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 232p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Anand Harshul

Author: Anand Harshul

आनंद हर्षुल

23 जनवरी, 1959 को छत्तीसढ़ के एक  गाँव—बगिया (रायगढ़) में जन्म। क़ानून तथा पत्रकारिता में स्तानक।

उनका पहला कहानी-संग्रह 'बैठे हुए हाथी के भीतर लड़का’ 1997 में प्रकाशित हुआ। उसके बाद 'पृथ्वी को चंद्रमा’ 2003, 'अधखाया फल’ 2009 तथा 'रेगिस्तान में झील’ 2014 में जो उनकी कहानियों का चौथा संग्रह है—जिसमें उनकी प्रारम्भ से 2001 तक की कहानियाँ संकलित हैं। पहला उपन्‍यास ‘चिड़िया बहनों का भाई’ 2017 में प्रकाशित।

'बैठे हुए हाथी के भीतर लड़का’ के लिए मध्य प्रदेश साहित्य परिषद के 'सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार’ (1997); 'पृथ्वी को चन्द्रमा’ के लिए 'विजय वर्मा अखिल भारतीय कथा सम्मान’ (2003) एवं समग्र लेखन के लिए 'वनमाली कथा सम्मान’ (2014) से सम्मानित।

कहानियों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद।

Email : anand_harshul@yahoo.co.in

        anand_harshul@gmail.com

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