Rahul Sankrityayan : Jinhen Seemayen Nahin Rok Sakin

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Rahul Sankrityayan : Jinhen Seemayen Nahin Rok Sakin
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अद्वितीय प्रतिभा के धनी महापंडित राहुल सांकृत्यायन की लेखनी से कोई भी ऐसी विधा अछूती नहीं रह गई थी, जिसका सम्बन्ध जन-जीवन से हो। एक साथ कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, भाषाशास्त्री, इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ता, दार्शनिक, पर्यटक, समाज सुधारक, राजनेता, विज्ञान और भूगोलवेत्ता, गणितज्ञ, शिक्षक, कुशल वक्ता तथा जितने भी समाज के स्वीकार्य रूप हो सकते हैं, उनमें सब विद्यमान थे।

अपने विचार स्वातंत्र्य के लिए ज्ञात राहुल जी ने जो भी लिखा, साक्ष्य सहित और निर्भीकतापूर्वक लिखा बिना यह सोचे कि उनके विचारों से किसी की भावना आहत भी हो सकती है।

संघर्षों से भरा उनका जीवन अन्धविश्वास उन्मूलन और अमीरी-ग़रीबी के भेद से रहित समानधर्मा समाज की स्थापना के लिए समर्पित था। इस त्याग के लिए उन्हें विरोधियों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा, जेल- जीवन और दंड-प्रहार की यातनाएँ भी सहनी पड़ी थीं।

वे कई भारतीय और विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे किन्तु उनका हिन्दी के प्रति प्रेम अटूट था।

जन-जन में यात्राओं के प्रति उत्साह भरनेवाले राहुल जी ने ऐसे-ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्राएँ की हैं और उन्हें लिपिबद्ध किया है, जिनके बारे में सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 164p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Jagdish Prasad Baranwal 'Kund'

Author: Jagdish Prasad Baranwal 'Kund'

जगदीश प्रसाद बरनवाल 'कुन्द'

जन्म : 31 जुलाई 1949; सर्फुद्दीनपुर, आज़मगढ़ (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी)।

साहित्य के प्रति बचपन से अभिरुचि। वर्ष 1963 में 'आज' में पहली कविता प्रकाशित। तब से ‘दैनिक जागरण’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘आजकल’, ‘नया ज्ञानोदय’, ‘पुनर्नवा’ आदि पत्र-पत्रिकाओं तथा कई संग्रहों में कविता, कहानी, लेख, नाटक, समीक्षा आदि का प्रकाशन।

पुरस्कार : वर्ष 1966 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 'धरती की लाल' लघु नाटक पर प्रथम पुरस्कार।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘विदेशी विद्वानों का हिन्दी प्रेम’, ‘विदेशी विद्वानों की दृष्टि में हिन्दी रचनाकर’, ‘विदेशी विद्वानों का संस्कृत प्रेम’, ‘अनुरंजिता’, ‘सच के क़रीब’, ‘सूरज का रूप’, ‘जीवन-लय’, ‘बिरही बिसराम’ आदि।

 

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