Purnmidam

Fiction : Novel
Author: Saroj Kaushik
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Purnmidam
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ऋचा, ऋचा थी—अतुलनीय, अनिंद्य, उसका हृदय एक छलछलाता हुआ प्रवाह था—प्रेम और निष्ठा के पारदर्शी जल से लबालब। उसकी आत्मा जैसी सहजता, वैसी पवित्रता को आजीवन बनाए रखना सरल नहीं। न वैसा आवेग, न वैसी अकुंठ तत्परता और न दूसरों के प्रति ऐसा नि:संकोच स्वीकार जीवन जीते हुए अक्षुण्ण रखना सम्भव है। जीवन की यात्रा में अक्सर मन और जीवन के पैर मैले हो ही जाते हैं, लेकिन ऋचा के नहीं। और वीरेश्वर जैसे उसी के लिए बना हुआ, उतना ही दृढ़, उसी अनुपात में स्वाभिमानी और ईमानदार। मन और वचन के संकल्पों को लेकर उतना ही गम्भीर और भरोसेमन्द।

ऋचा और वीरेश्वर की यह कहानी स्त्री-जीवन के साथ-साथ स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के बारे में एक नई दृष्टि देती है। स्त्री यहाँ पूर्णत: एक जिजीविषा का स्वरूप ग्रहण कर लेती है जो अपने आत्म की खोज-यात्रा में जीवन और मूल्यों के नए-नए सोपान चढ़ती चली जाती है। ब्राह्मण होते हुए वह दलित युवक वीरेश्वर से प्रेम करती है और पूरा जीवन उस प्रेम को अपनी आस्था का अवलम्बन बनाए रखती है और स्वयं भी उसके लिए एक स्तम्भ बनी रहती है। इसी रिश्ते से जन्मी उनकी बेटी प्रज्ञा पुन: समाज की रूढ़ियों और स्वयं उनके लिए एक मानक बनकर सामने आती है। न

ए मूल्यों की स्थापना करता सहज भाषा और शिल्प में अत्यन्त पठनीय उपन्यास।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2019
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 128p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 1.5
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Editorial Review

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Saroj Kaushik

Author: Saroj Kaushik

सरोज कौशिक

सरोज कौशिक का जन्म 6 अक्टूबर, 1940 को फ़िरोज़पुर, पंजाब में हुआ। आपने कराची, बम्बई और कलकत्ता में पढ़ाई की। समाज-सेवा, संगीत और लिखने-पढ़ने का संस्कार माँ से मिला और पिता से निर्लिप्तता। आपका एक प्रकाशित उपन्यास है ‘कोलकी’ जो काफ़ी प्रशंसित रहा। आपने बाँग्ला के प्रसिद्ध लेखक सुनील गंगोपाध्याय के बहुचर्चित उपन्यास ‘धूलिबसन’ का हिन्दी अनुवाद ‘उत्तर संधान’ नाम से किया है। ‘हंस’, ‘रविवार’ सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं।

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