Pret Aur Chhaya

As low as ₹180.00 Regular Price ₹200.00
You Save 10%
In stock
Only %1 left
SKU
Pret Aur Chhaya
- +

अज्ञात चेतना का मनोविज्ञान अभी तक शैशव अवस्था से आगे नहीं बढ़ पाया है। यूरोप के मनोवैज्ञानिकों ने इस ओर क़दम बढ़ाया है, पर अभी तक वे प्रारम्भिक सीढ़ी भी तय नहीं कर पाए हैं। मेरे मन में यह दृढ़ विश्वास है कि यह सब विद्वानों का मूलगत विज्ञान भारतीय क्षेत्र में ही चरम उन्नति प्राप्त कर सकेगा। अन्तश्चेतना की रहस्यमयता की ओर भारतीय दार्शनिकों का झुकाव उपनिषदों के युग से लेकर आज तक बराबर जारी रहा है। उपनिषदों के युग में हमने उस अगाध रहस्यमयता का महान आभास पाया है। अब उसी रहस्योन्मुखता की प्रवृत्ति को नया रूप देकर अन्तर्दृष्टि और विवेक से पूर्ण समन्वय से हम भारतीयों को इस तथ्य के अनुसन्धान में जुट जाना होगा कि अज्ञात चेतना के पाताललोक में स्थित अतल नरक के विश्लेषण द्वारा बाह्य-जीवन-तत्त्वों के साथ उन नारकीय (किन्तु मूल) जीवन-तत्त्वों का समुचित समन्वय स्थापित करके मानव-जगत में किन उपायों से आपेक्षिक स्वर्ग की स्थापना की जा सकती है। इस ओर का कोई भी प्रयास, चाहे वह कैसा ही क्षीणतम और असंख्य दोषों से पूर्ण क्यों न हो, उपेक्षणीय नहीं होना चाहिए—स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 292p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Pret Aur Chhaya
Your Rating
Ilachandra Joshi

Author: Ilachandra Joshi

इलाचन्द्र जोशी

जन्म : 13 दिसम्बर, 1902; अल्मोड़ा के एक प्रतिष्ठित मध्यवर्गीय परिवार में।

सन् 1921 में शरद बाबू से इनकी भेंट हुई। 'चाँद' के सहयोगी सम्पादक रहे और सन् 1929 में ‘सुधा’ का सम्पादन किया। ‘कोलकाता समाचार’, ‘चाँद', ‘विश्वचाणी', ‘सुधा’, ‘सम्मेलन-पत्रिका’, ‘संगम', ‘धर्मयुद्ध' और ‘साहित्यकार' जैसी पत्रिकाओं के सम्पादन से भी जुड़े रहे। पहला उपन्यास जो 1927 में लिखा गया था, सन् 1929 में प्रकाशित हुआ।

प्रमुख कृतियाँ : उपन्यास—‘लज्जा’, ‘संन्यासी’, ‘पर्दे की रानी’, ‘प्रेत और छाया’, ‘निर्वासित’, ‘मुक्तिपथ’, ‘सुबह के भूले’, ‘जिप्सी’, ‘जहाज़ का पंछी’, ‘भूत का भविष्य’, ‘ऋतुचक्र’; कहानी—‘धूपरेखा’, ‘दीवाली और होली’, ‘रोमांटिक छाया’, ‘आहुति’, ‘खँडहर की आत्माएँ’, ‘डायरी के नीरस पृष्ठ’, ‘कँटीले फूल लजीले काँटे’; समालोचना तथा निबन्ध—‘साहित्य सर्जना’, ‘विवेचना’, ‘विश्लेषण’, ‘साहित्य चिंतन’, ‘शरतचन्द्र-व्यक्ति और कलाकार’, ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’, ‘देखा-परखा’।

सम्मान : उत्तर प्रदेश शासन द्वारा ‘ऋतुचक्र' उपन्यास पर ‘प्रेमचन्द पुरस्कार’, ‘विशिष्ट पुरस्कार’ सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित। सन् 1979 में साहित्य वाचस्पति की उपाधि।

विशिष्ट पुरस्कार उत्तर प्रदेश शासन द्वारा 1976-77, साहित्य वाचस्पति की उपाधि 1979 ईं.।

निधन : सन् 1982

Read More
Books by this Author
Back to Top