कमलिनी (सेक्रेटरी का यही नाम था) इस ढंग से मुस्कराने लगी जैसे वह मेरे दिल की सब बातें ताड़ गई हो। बोली, “ऐसे गुणवान पुरुष को स्त्रियों की महफ़िल में लाना क्या ख़तरे की बात नहीं है?” मैंने पूछा, “ख़तरा कैसा?” “अरी पगली, समझती नहीं? तेरे अनुमोदित और इच्छित पुरुष की आँखें जब इतनी अलबेली नारियों पर दौड़ेंगी तो क्या फिर वह तेरी परवाह करेगा?” “दुर। कहके मैंने, गुस्से में आकर उसकी पीठ पर एक धौल जमा दी। पर उसकी इस बात से मेरे हृदय में भय का संचार होने लगा। कमलिनी ने कहा, “अच्छी बात है। मुझे कोई एतराज़ नहीं। पर मैं सावधान किए देती हूँ। पीछे पछताना पड़ेगा।" यूनिवर्सिटी के लड़कों और प्रोफ़ेसरों के साथ कमलिनी की बड़ी घनिष्ठता थी। बहुत सम्भव है, उन लोगों के स्वभाव से परिचित होने पर वह पुरुषों की प्रकृति से अभिज्ञ हो चुकी थी। उसकी बात से कुछ भय होने पर भी मुझे विशेष चिन्ता नहीं हुई। मुझे अपने रूप-गुण का बड़ा घमंड था। किसी व्यक्ति को मुझे छोड़कर अन्यत्र जाने का लोभ हो सकता है, यह आशंका मेरे हृदय में उत्पन्न नहीं हो सकती थी।
—इसी पुस्तक से।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2016 |
Edition Year | 2016, Ed 1st |
Pages | 112p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |