Pratinidhi Shairy : Habeeb 'Jalib'

Author: Habeeb 'Jalib'
Editor: Naresh 'Nadeem'
Edition: 2010, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Pratinidhi Shairy : Habeeb 'Jalib'

उर्दू की मशहूर शायरा मोहतरमा फ़हमीदा रियाज ने कहा : तारीख़ ने ख़िलक़त को तो क़ातिल ही दिए, ख़िलक़त ने दिया है उसे ‘जालिब’ सा जवाब। और इस शे’र के साथ एक ऐसे शायर की तस्वीर हमारे सामने आती है जिसने अपनी सारी ज़िन्दगी समाज के दबे-कुचले लोगों के नाम कर दी थी। यहाँ हमें ऐसा शायर नज़र आता है जो बार-बार सलाख़ों के पीछे डाला गया, जिसकी एक क्या, तीन-तीन किताबें ज़ब्त की गईं, पासपोर्ट ज़ब्त किया गया, जिस पर झूठा आरोप लगाकर एक साज़िश के तहत मुक़दमे में फँसाया गया, जिसका एक बच्चा दवा-दारू के बिना मरा, और फिर भी जब वह जेल जाता है तो अपनी बीमार बच्ची के नाम सन्देश देकर जाता है कि आनेवाला दौर नई

नस्ल का ही होगा : मेरी बच्ची, मैं आऊँ न आऊँ, आनेवाला ज़माना है तेरा। इतना ही नहीं, जब-जब उसे सत्ता की ओर से प्रलोभन दिए गए, उसने उन्हें ठुकराने में एक पल की देर नहीं की।

हबीब जालिब की शायरी के बारे में कुछ कहना गोया सूरज को चिराग़ दिखाने के बराबर होगा। हम तो इतना ही जानते हैं कि ‘मज़ाज’ ने 1952 में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि ‘जालिब अपने अहद का एक बड़ा शायर होगा’, ‘फ़िराक़’ ने साफ़ तौर पर कहा कि ‘सूरदास का नग़्मा और मीराबाई का खोज अगर यकजा हो जाएँ तो हबीब जालिब बनना है,’ और सिब्ते-हसन, इन्तज़ार हुसैन समेत बहुत सारे अदीबों और जनसाधारण को जालिब ‘नज़ीर’ अकबराबादी के बाद उर्दू के अकेले जनकवि नज़र आते हैं। फिर हज़रत ‘जिगर’ मुरादाबादी ने जो दाद दी, वह खुद ही दाद के क़ाबिल है। फ़रमाया, “हमारा ज़मान-ए-मैनोशी होता तो हम जालिब की ग़ज़ल पर सरे-महफ़िल ख़रा कराते।”

ऐसे ही शायर का यह एक भरा-पूरा प्रतिनिधि संकलन है, जिसे पाठक सँजोकर रखना चाहेंगे।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 211p
Translator Not Selected
Editor Naresh 'Nadeem'
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 13.5 X 1.5
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Author: Habeeb 'Jalib'

हबीबजालिब

जन्म : 22 मार्च, 1928; म्यानी अफ़ग़ानाँ, ज़िला—होशियारपुर, पंजाब में।

शिक्षा : जो कुछ भी थोड़ी-बहुत शिक्षा पाई, वह अधिकतर दिल्ली में पाई।

1941 में फुटकर काव्य-रचना शुरू कर चुके थे; 1943-44 में मेहनत-मज़दूरी से जीवनयापन का आरम्भ। देश-विभाजन के साथ पाकिस्तान चले गए, मगर जल्दी ही मोहभंग भी हो गया। अनेकों बार जेल की यात्रा। 1976 में हैदराबाद (सिन्‍ध) साज़िश मुक़द्दमे में फँसाए गए और 1978 में ही ज़मानत मिली। 1958 में पासपोर्ट ज़ब्त हुआ तो 1988 में वापस मिला। एक दफ़ा तो लन्‍दन जाते हुए कराची हवाई अड्डे पर ही रोक लिए गए, बावजूद इसके कि सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें देश से बाहर जाने की छूट दे दी थी। आरम्भ में आलोचकों ने उनकी शायरी को नकारा, मगर आख़ि‍र में एक जनकवि स्वीकार किए गए। अनेक फ़िल्मों में गीत लिखे, पर यह लाइन जल्द ही छोड़ दी।

प्रमुख कृतियाँ : ‘बर्गे-आवारा’, ‘सरे-मक़तल’, ‘अहदे-सितम’, ‘ज़िक्र बहते ख़ून का’, ‘गोशे में क़फ़स के’, ‘अहदे-सज़ा’, ‘हर्फ़े-हक़’, ‘इस शह्रे-ख़राबी में’, ‘जालिबनामा’, ‘हर्फ़े-सरदार’। एक ‘कुल्लियात’ जीवनकाल में ही प्रकाशित।

सम्मान : ‘निशान-ए-इम्तियाज’, ‘निगार पुरस्‍कार’, ‘हसरत मोहानी पुरस्कार’, ‘जम्हूरियत पुरस्कार’, ‘सोहनसिंह जोश पुरस्कार’ आदि।

निधन : 12 मार्च,1993; लाहौर। 

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