Pragatishil Chintak Siyaramsharan Gupta : Sampurna Kavya : Vols. 1-2-Hard Cover

Editor: Saroj Gupta
ISBN: 9789352211777
Edition: 2016, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
Special Price ₹1,700.00 Regular Price ₹2,000.00
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9789352211777
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जागरूक व चिन्तनशील कवि सियारामशरण गुप्त के समग्र काव्य में जीवन के करुणाभाव, सहजता और यथार्थ, देशप्रेम, समाज की वास्तविकता इत्यादि को बड़ी सजीवता से प्रस्तुत किया गया है। जीवन के प्रति करुणा का भाव सहज और यथार्थ रूप में आप द्वारा रचित साहित्य में देखा जा सकता है। गुप्त जी के काव्य में तत्कालीन समाज का चित्रण, सामाजिक समस्याओं एवं उसके सुधार के रूप में परिलक्षित हुआ है।

गुप्त जी ने विभिन्न विधाओं कहानी, कविता तथा संस्मरण के माध्यम से साहित्य-सर्जना की है। गांधी विचारधारा के अनुयायी गीता के उपदेशों से भी बहुत प्रभावित थे। उनकी रचनाओं में जो देखने को मिलता है, उनको गांधी जी के तात्त्विक पक्ष को कविताओं में उतारने का प्रयास किया है।

सत्य, अहिंसा और प्रेम-सिद्धान्तों के माध्यम से मानव में व्याप्त असत्यरूपी अन्धकार से मुक्ति की कामना है तथा मानव-जीवन को सफल बनानेवाले गुणों जैसे—कर्तव्य, क्षमा, दया, धैर्य, दान, सेवा तथा उत्साह और सदाचार को काव्य के माध्यम से प्रस्तुत किया है। जटिल साधना द्वारा नैतिक गुणों को प्राप्ति का साधन बताया जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि आत्मबल ही मनुष्य की वास्तविक शक्ति है। स्वतंत्रता संग्राम के समय गांधी जी द्वारा चलाए गए सत्याग्रह आन्दोलन को आप महान सांस्कृतिक आन्दोलन बताते हैं। गांधीवादी यथार्थ, राष्ट्रप्रेम, विश्व-शान्ति, विश्व-प्रेम इत्यादि भावविचारों और जीवन के आदर्शों को प्रस्तुत करना तथा सात्त्विक भावोद्गारों के लिए गुप्त जी की कार्य-रचना सदैव स्मरणीय रहेगी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2016
Edition Year 2016, Ed. 1st
Pages 1130p
Price ₹2,000.00
Translator Not Selected
Editor Saroj Gupta
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 6
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Siyaramsharan Gupt

Author: Siyaramsharan Gupt

श्री सियारामशरण गुप्त

जन्म : 14 सितम्बर, 1895 ई. को गृहग्राम—चिरगाँव, झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुआ।

कवि, कथाकार और निबन्ध लेखक के रूप में ख्याति।

सियारामशरण गुप्त की रचनाओं में उनके व्यक्तित्व की सरलता, विनयशीलता, सात्त्विकता और करुणा सर्वत्र प्रतिफलित हुई है। वास्तव में गुप्त जी मानवीय संस्कृति के साहित्यकार हैं। उनकी रचनाएँ सर्वत्र एक प्रकार के चिन्तन, आस्था-विश्वासों से भरी हैं जो उनकी अपनी साधना और गांधी जी के साध्य-साधन की पवित्रता की गूँज से ओत-प्रोत हैं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘मौर्य-विजय’, ‘अनाथ’, ‘दूर्वादल’, ‘विषाद’, ‘आर्द्रा’, ‘आत्मोत्सर्ग’, ‘पाथेय’, ‘मृण्मयी’, ‘बापू’, ‘उन्मुक्त’, ‘दैनिकी’, ‘नकुल’, ‘नोआखली में’, ‘जयहिन्द’, ‘गीता-संवाद’, ‘गोपिका’, ‘अमृत-पुत्र’ (काव्य); ‘गोद’, ‘अन्तिम आकांक्षा’, ‘नारी’ (उपन्यास); ‘मानुषी’ (कहानी-संग्रह); ‘झूठ-सच’ (निबन्ध) तथा ‘पुण्य पर्व’ (नाटक) लोकप्रिय हैं।

देहावसान : 29 मार्च, 1963

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