Pahar Ki Pagdandiyan

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Pahar Ki Pagdandiyan

पहाड़ चार आयामी होता है। उसमें लम्बाई-चौड़ाई के साथ-साथ ऊँचाई और गहराई भी होती है। इस भौगोलिक विशिष्टता के कारण वहाँ नज़रिया भी कई कोण लिए होता है।

पहाड़ की पगडंडियों पर चलने के लिए चाल में दृढ़ता ज़रूरी है और पाँव ख़ास तरह की पकड़ माँगते हैं।

प्रकाश थपलियाल की इन कहानियों में यह पकड़ है। ये पहाड़ की शृंखलाओं की तरह परत-दर-परत खुलती जाती हैं और हर कहानी नए गिरि-गह्वरों की सैर कराती जाती है। इनमें पहाड़ की मासूमियत और पगडंडियों के रास्ते गाँव-गाँव तक पहुँची तिकड़मी राजनीति एक साथ दिखाई देती हैं। फिर भी ये राजमार्ग और उसकी संस्कृति से काफ़ी दूर और दुर्गम हैं। जीव-जगत के साथ मानवी अन्योन्याश्रितता को ये बख़ूबी रेखांकित करती हैं और यह बताती हैं कि किस तरह पहाड़ी जन-जीवन बाहरी दबावों से, शुरुआती संशय के साथ, ताल-मेल बैठाकर समायोजन और अनुकूलन करता जा रहा है।

इन कहानियों में पर्वतीय जनजीवन अपनी कठिनाइयों, संघर्षों, ठिठोलियों और शहरों को अनोखे लगनेवाले अपने पात्रों के साथ पाठकों के सामने उतर आता है। थपलियाल की ये कहानियाँ कोरी रूमानियत वाली नहीं हैं बल्कि क़दम-दर-क़दम जीवन के तर्क के साथ आगे बढ़ती हैं।

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Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 2009
Pages 110p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21 X 14 X 1.5
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Prakash Thapliyal

Author: Prakash Thapliyal

प्रकाश थपलियाल                           

जन्म : 23 सितम्बर, 1956 को उत्तराखंड में आदिबदरी के पास थापली गाँव में।

शिक्षा : आठवीं तक शिक्षा गाँव में; माध्यमिक शिक्षा दिल्ली में। स्नातक परीक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की। बाद में उन्होंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर इसी विषय में डॉक्टरेट की।

प्रकाश थपलियाल पेशे से पत्रकार हैं और गत ढाई दशक से इस पेशे से जुड़े हैं। हिन्दी साहित्य में भी उनका योगदान विशिष्ट है। उन्होंने सुप्रसिद्ध ‘हिमालयन गजेटियर’ ग्रन्थ-शृंखला का अनुवाद किया है। जिम कार्बेट की ‘मैन ईटिंग लेपर्ड ऑफ़ रुद्रप्रयाग’ के हिन्दी अनुवाद का श्रेय भी उन्हें है। इनके अलावा भी अनेक पुस्तकों का उन्होंने अनुवाद और सम्पादन किया है। उनकी कहानियाँ और व्यंग्य प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘पहाड़ की पगडंडियाँ’, ‘कविता का गणित’ आदि।

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