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Non Resident Bihari : Kahin Paas Kahin Fail-E-Book

Edition: 2019, 4th Ed.
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
Special Price ₹149.25 Regular Price ₹199.00
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9788183617963-ebook

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क्या होता है जब बिहार में किसी भी थोड़े सम्पन्न परिवार में बच्चे का जन्म होता है? उसके जन्मते ही उसके बिहार छूटने का दिन क्यों तय हो जाता है? जब सभी जानते हैं कि मूँछ की रेख उभरने से पहले उसको अनजान लोगों के बीच चले जाना है—तब भी क्यों उसको गोलू-मोलू-दुलारा बना के पाला जाता है? वही ‘दुलारा बच्चा’ जब आख़िरकार ट्रेन में बिठाकर बिहार से बाहर भेज दिया जाता है तब क्या होता है उसके साथ? सांस्कृतिक धक्के अलग लगते हैं, भावनात्मक अभाव का झटका अलग—इनसे कैसे उबरता है वह? क्यों तब उसको किसी दोस्त में माशूका और माशूका में सारे जहाँ का सुकून मिलने लगता है?

‘एनआरबी’ के नायक राहुल की इतनी भर कहानी है—एक तरफ़ यूपीएससी और दूसरी तरफ़ शालू। यूपीएससी उसकी ज़िन्दगी है, शालू जैसे ज़िन्दगी की ‘ज़िन्दगी’। एक का छूटना साफ़ दिखने लगता है और दूसरी किनारे पर टँगी पतंग की तरह है। लेकिन इसमें हो जाता है लोचा। क्या? सवाल बहुतेरे हैं। जवाब आपके पास भी हो सकते हैं। लेकिन ‘नॉन रेज़िडेंट बिहारी’ पढ़कर देखिए—हर पन्ना आपको गुदगुदाते, चिकोटी काटते, याद-गली में भटकाते ले जाएगा एक दिलचस्प अनुभव की ओर।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 4th Ed.
Pages 120p
Price ₹199.00
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Shashikant Mishra

Author: Shashikant Mishra

शशिकांत मिश्र

पिछले 13 सालों से मीडिया में सक्रिय। आठ साल से स्टार न्यूज़, एबीपी न्यूज़ में, इससे पहले इंडिया टीवी में कार्यरत। बिहार के कटिहार ज़ि‍ले में पला-बढ़ा। अर्थशास्त्र में स्नातक और हिन्दी पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की डिग्री है, लेकिन बस डिग्री। बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई से छत्तीस का आँकड़ा रहा है। आवारागर्दी में ज़माने की सैर करता रहता हूँ और वहीं ज़िन्दगी के मायने तलाशता हूँ। ज़्यादातर बिहारी स्टूडेंट की तरह लालबत्ती की ख्‍़वाहिश लिए यूपीएससी वालों के मक्का मदीना मुखर्जी नगर पहुँच गया था। लालबत्ती तो मिली नहीं, अलबत्ता ‘नॉन रेज़िडेंट बिहारी’ के लिए भरपूर ‘मसाला’ मिल गया! वह पहला उपन्यास था। लोगों ने कहा, वाह-वाह तो दूसरा लिख डाला—‘वैलेंटाइन बाबा’। कुछ और भी लिख रहा हूँ।

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