Nashtar-Paper Back

Author: Hasan Shah
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ISBN: 9789390971855
Edition: 2022, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
Special Price ₹179.10 Regular Price ₹199.00
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9789390971855
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‘नश्तर’ को पहला भारतीय उपन्यास कहा जा सकता है। सन् 1790 में जब हसन शाह ने इसे लिखा था तब तक हमारे यहाँ अंग्रेज़ी तर्ज़ के ‘नॉवेल’ का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था।

यह वो ज़माना था जब भारत में नवाबी शानो-शौक़त अपने उतार पर थी और अंग्रेज़ों ने जगह-जगह अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दिया था। अब वे ही स्वयं को नवाब समझने लगे थे और यहाँ की नाचने-गाने वाली स्त्रियों से अपना मनोरंजन करना उनका शौक़ बन गया था। इसके चलते इस व्यवसाय से जुड़ी स्त्रियों के समूह भी रोज़ी-रोज़गार के सिलसिले में अंग्रेज़ी दरबारों से जुड़ने लगे थे।

‘नश्तर’ का कथानायक ऐसे ही एक समूह की एक लड़की के प्रेम में पड़ जाता है जिसका अंजाम किसी ग्रीक ट्रेजेडी से कम नहीं होता। खानम जान के मोहक लेकिन सशक्त व्यक्तित्व ने उस ट्रेजेडी को जो गरिमा प्रदान की है, वह अद्भुत है।

‘नश्तर’ एक आत्मकथात्मक उपन्यास है। एक प्रेमकथा। एक त्रासदी...किन्तु यह केवल प्रेम की नहीं, बल्कि नृत्य-संगीत और कला-संस्कृति से जुड़ी एक पूरी ज़िन्दगी, पूरी परम्परा की भी त्रासदी है।

मूलत: फ़ारसी भाषा में रची गई अठारहवीं शताब्दी की इस कृति में शिल्प के स्तर पर आधुनिकता के अनेक लक्षणों को भी देखा जा सकता है।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 167
Price ₹199.00
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Author: Hasan Shah

हसन शाह के जीवन से जुड़ी कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। चूँकि ‘नश्तर’ एक आत्मकथात्मक रचना है, इसलिए उन्हीं के अनुसार उनके पूर्वज उत्तर मुग़ल काल में ही यमन से मध्य एशिया होते हुए भारत आ गए थे। उनका पूरा नाम सैयद हसन शाह था और वे मिंग नामक एक अंग्रेज़ अफ़‍सर के यहाँ मुंशी थे। मिंग और कल्लन साहब सम्भवत: मैनिंग (Manning) और कॉलिंस (Collins) थे। हसन शाह की सूचना के अनुसार मिंग साहब सर आयर कूट (Eyre Coote) के भांजे थे और कानपुर में रहते थे। कानपुर उन दिनों अंग्रेज़ों की छावनी बन चुका था।

हसन शाह ने लगभग 20 वर्ष की उम्र में ‘नश्तर’ की रचना की थी। हिजरी सन् 1205 यानी सन् 1790 ई. में। यह भी पता चलता है कि कालान्तर में उन्होंने कानपुर छोड़ दिया था और लखनऊ जाकर बस गए थे। वहाँ वे उस समय के प्रसिद्ध शाइर ‘जुर्रत’ के शिष्य हो गए थे। सम्भवत: उन्होंने कभी विवाह नहीं किया और अपना पूरा जीवन किसी सूफ़ी सन्त की तरह बिताया। एक जानकारी और मिलती है कि 1883 ई. में अपने छोटे भाई हुसैन शाह के निधन के समय हसन शाह जीवित थे।

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