Meri Dharti Mere Log

Edition: 2007
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Meri Dharti Mere Log

कवि तीखा होता हुआ मनहर है—वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि। कितनी सरल, कितनी कोमल जनान्तिक, फिर भी अभिजात, कितनी आम-अवाम को पुकारती उसकी आवाज़ है। शब्दों का औदार्य, रचना की सुघराई, गिरा की गरिमा, भावों की तीखी सादगी सिद्ध करती है कि—सिम्पल इज़ द कल्मिनेशन ऑफ़ द कॉम्प्लेक्स।

—डॉ. भगवतशरण उपाध्याय

यह कृति सिखाती है कि किस तरह कवि संवेदना में जनवादी और क्रान्तिकारी हो सकता है। यह काव्य स्वाद और आग एक साथ देता है। इस आग से रूपान्तरित व्यक्तित्व आदमी नहीं रहता, वह क्रान्ति का अस्त्र बन जाता है, जिसे इतिहास इस्तेमाल करता है।

—डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय

शेषेन्द्र के काव्य में भारतीय आत्मा की लाक्षणिक अभिव्यक्ति है। इसकी बनावट बौद्धिक नहीं, हार्दिक और आत्मिक है। यह केवल मस्तिष्क को उत्तेजित करके नहीं छोड़ देता बल्कि एक गहितर वेदना और संवेदना से हमें भीतर ही भीतर गला देता है।

—वीरेन्द्र कुमार जैन

शेषेन्द्र तेलगू-काव्य के ही नहीं, बल्कि विश्व-काव्य के आशा-सूर्य हैं। कविता-रहस्य जितना वह जानते हैं, उतना अन्य आधुनिक कवि कम जानते हैं। श्रमिक-जीवन की भूमिका पर आधारित ‘मेरी धरती : मेरे लोग’ बीसवीं शती की जिह्वा और आगामी पीढ़ियों की हृदय-ध्वनि है। शेषेन्द्र वह कवि हैं जिसे राजेश्वर ने अपनी ‘काव्य-मीमांसा’ में इस तरह वर्णित किया है—वायं पताकामिव यस्य दृष्ट्वा जनः कवीनाम अनुपृष्ठ मेति।

—डॉ. सरगूकृष्ण मूर्ति

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Edition Year 2007
Pages 145p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Sheshendra Sharma

शेषेन्द्र शर्मा

जन्म : 20 अक्टूबर, 1927 को आन्ध्र प्रदेश में हुआ। आन्ध्र विश्वविद्यालय से विज्ञान से स्नातक हुए तथा मद्रास विश्वविद्यालय से क़ानून पास किया। 16 जून, 1971 में अंग्रेज़ी की प्रसिद्ध कवयित्री राजकुमारी इन्दिरा देवी धनराजगिरि से प्रेम विवाह हुआ जो अपने राजस-चरित्र के कारण भी चर्चा का विषय बना।

शेषेन्द्र बहुभाषी हैं तथा बहुमुखी प्रतिभा के लेखक भी। साहित्य की सभी विधाओं में प्रणयन। अब तक उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित। उन्होंने तेलगू फ़िल्मों के लिए गीत भी लिखे। भारत की अनेक भाषाओं तथा अंग्रेज़ी में भी उनकी रचनाएँ अनूदित हुई हैं। उन्होंने सपत्नीक यूरोप की सांस्कृतिक-यात्राएँ कीं। सन् 1977 में वह श्री व्यंकटेश्वर विश्वविद्यालय में ‘विज़टिंग प्रोफ़ेसर’ रहे। अनेक वर्षों तक हैदराबाद नगर निगम के उप-कमिश्नर के पदोपरान्त 1983 में अवकाश ग्रहण किया। ‘कवि-सेना’ नामक उनका काव्य-आन्दोलन तेलगू भाषा, साहित्य और समाज के लिए विलक्षण सांस्कृतिक प्रयोग है।

वाल्मीकि और कालिदास उनके सर्वाधिक प्रिय कवि हैं। संगीत उनके एकान्त का सखा है। एक कविता में भले ही अपने को मांसाहारी बताया हो परन्तु जीवन में वह शुद्ध निरामिष हैं। भूषा, आदतों और रुचियों से वह तेलगू अवश्य हैं परन्तु व्यक्तित्व से आकंठ भारतीय।

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