‘मेरे समय के साथ’ में शामिल कविताएँ श्यामपलट पांडेय को उत्तर-आधुनिक दौर के कवि के रूप में एक विशेष पहचान प्रदान करती हैं। इस संग्रह की कविताओं में मनुष्य के स्वप्न एवं यथार्थ के मध्य की कठिन भूमि बार-बार उपस्थित होती है। मूल्यों के तेज़ी से होते क्षरण को लेकर उपजी बेचैनी और उन्हें बचाए रखने की विकलता इन कविताओं में बार-बार लक्षित की जा सकती है।
इन कविताओं में एक देशज नॉस्टेल्जिया पूरी सृजनात्मक ऊँचाई तक पहुँचती है, जो जीवन के बीच से जीवन के पार तक ले जाती है। कविताओं के पार्श्व में मिट्टी की महक और लय के साथ एक लोक-ध्वनि बराबर बजती रहती है। अपने जातीय अनुभव-बोध की ज़मीन से उपजे अचिह्नित शब्दों को उठाकर नई या अद्भुत अर्थच्छवियाँ गढ़ना बहुत कम सम्भव हो पाता है। इस संग्रह की अनेक कविताएँ ऐसी ही अद्भुत अर्थच्छवियों के उजास से आलोकित हैं।
भाषा की ताज़गी लिए एक नया शिल्प बुनती ये कविताएँ कवि की घनीभूत संवेदना के साथ एकाकार हो जाती हैं। कवि अपने वस्तु-विन्यास या कविता की संरचना के प्रति पिछले संग्रहों की अपेक्षा अधिक सजग है और इसीलिए इन कविताओं का कसा हुआ शिल्प-सौष्ठव एक अलग जगमगाहट बिखेरता है। इन कविताओं में गाँव और शहर एक साथ उपस्थित होते हैं। अन्तर्विरोध एवं द्वन्द्व को उभारती तथा आसपास की हलचल को उकेरती इन कविताओं की गूँज पाठक के मन में बहुत दिनों तक छाई रहती है।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back |
Edition Year | 2008 |
Pages | 95p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |