Mere Baad….

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गहरी से गहरी बात को आसानी से कह देने का जटिल हुनर जाननेवाले राहत भाई से मेरा बड़ा लम्बा परिचय है। मुशायरे या कवि-सम्मेलन में वे कमल के पत्ते पर बूँद की तरह रहते हैं। पत्ता हिलता है, झंझावात आते हैं, बूँद पत्ते से नहीं गिरती। कई बार कवि और शायर कार्यक्रम शुरू होने से पहले मंच पर आसन जमा लेते हैं, लेकिन इस नए कॉरपोरेट ज़माने में चूँकि कवि-सम्मेलन या मुशायरा एक शो या इवैंट की तरह हैं, तो शुरुआत से पहले आम तौर से शायर हज़रात मंच के पीछे खड़े रहते हैं। नाम के साथ एक-एक करके उनको पुकारा जाता है, तब मंच पर आते हैं। जिस शायर के लिए ख़ूब देर तक ख़ूब सारी तालियाँ बजती रहती हैं, उनका नाम है राहत इन्दौरी। एक अध्यापक जैसे सादा लिबास में वे आते हैं, जो बिलकुल शायराना नहीं होता। तालियों के प्रत्युत्तर में वे हल्का सा झुककर सामईन को आदाब करते हैं और बैठने के लिए अपनी सुविधा की जगह देखते हैं, वैसे उन्हें पालथी मारकर बैठने में भी कोई गुरेज़ नहीं होता। एक बेपरवाही भी शाइस्तगी के साथ मंच पर बैठती है, जब राहत भाई बैठते हैं। आम तौर से हथेली को गद्दे से टिका देते हैं। मैं कई बार उनके गाढ़े साँवले सीधे हाथ को, जिसको वे टिकाते हैं, देर तक देखता रहता हूँ, उसकी अँगूठियों को निहारता हूँ और उँगली अँगूठे के पोरों को देखता हूँ कि कितनी ख़ुश होती होगी वह क़लम जब इस हाथ से अशआर निकलते होंगे। ऐसे अशआर जिनकी ज़िन्दगी बहुत तवील है, बहुत लम्बी है।

राहत साहब जब माइक पर आते हैं तो लगता है कि ये ज़मीन से जुड़ा हुआ आदमी कुछ इस तरह खड़ा है कि ज़मीन ख़ुश है और वो जब हाथ ऊपर उठाते हैं तो लगता है कि आसमान छू रहे हैं। वे तालियों से बहुत ख़ुश हो जाएँ या अपने अशआर सुनाते वक़्त तालियों की अपेक्षा रखें, ऐसा नहीं होता। उनका अन्दाज़, उनके अल्फाज़, उनकी अदायगी, ज़बान पर उनकी पकड़, उनकी आवाज़ का थ्रो, उनके हाथों का संचालन, माइक से दूर और पास आने की उनकी कला, शब्द की अन्तिम ध्वनि को खींचने का उनका कौशल, एक पंक्ति को कई बार दोहराकर सोचने का समय देने की होशियारी, एक भी शब्द कहीं ज़ाया न हो जाए इसकी सावधानी, न कोई भूमिका और न उपसंहार, अगर होते हैं तो सिर्फ़ और सिर्फ़ अशआर। बहुत नहीं सुनाते हैं, लेकिन जो सुना जाते हैं, वह कम नहीं लगता। क्योंकि वे जो सुना गए, उस पर सोचने के लिए कई गुना वक़्त ज़रूरी होता है। वे सामईन को स्तब्ध कर देते हैं। वे अपने जादू की तैयारी नहीं करते, लेकिन जब डायस पर आ जाते हैं तो उनका जादू सिर चढ़कर बोलता है। राहत इन्दौरी का होना एक होना होता है। वे अपनी निज की अनोखी शैली हैं, दुनिया-भर के सैकड़ों शायर उनका अनुकरण करते हैं, लेकिन सिर्फ़ कहन की शैली से क्या होता है, शैली के पीछे सोच और समझ का व्यापक भंडार भी तो होना चाहिए।

‘जुगनुओं ने फिर अँधेरों से लड़ाई जीत ली, चाँद, सूरज घर के रौशनदान में रखे रहे' ये शे’र ये बताता है कि उनके अन्दर इतना हौसला है कि कायनात से चाँद-सूरज को उठाकर वे अपने रौशनदान में रख सकते हैं। रौशनदान दोनों तरफ़ उजाला करता है। घर के अन्दर भी और घर के बाहर भी। अगर वे सूरज, चाँद हैं तो। मुझे लगता है कि राहत इन्दौरी एक रौशनदान हैं, जो आभ्यन्तर लोक को भी देदीप्यमान करते हैं तो बहिर्लोक को भी चुँधिया देते हैं। बहुत लम्बी चर्चा की जा सकती है राहत भाई के बारे में वो कवि-सम्मेलनों और मुशायरों के लिए एक राहत हैं, एक धरोहर हैं क्योंकि वे सामईन की चाहत हैं। मैं दुआ करता हूँ कि राहत भाई कवि-सम्मेलन और मुशायरों को स्तरीय बनाए रखने में अपना योगदान दीर्घकाल तक देते रहें...!

—अशोक चक्रधर

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2016
Edition Year 2020, Ed. 3rd
Pages 91p
Translator Anuradha Sharma
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Rahat Indori

Author: Rahat Indori

राहत इन्दौरी

डॉ. राहत इन्दौरी का जन्म 1 जनवरी, 1950 को इन्दौर में श्री रिफतुल्लाह और मकबूल बी के घर में हुआ। उन्होंने उर्दू में एम.ए. और पीएच.डी. करने के बाद इन्दौर विश्वविद्यालय में सोलह वर्षों तक उर्दू साहित्य अध्यापन और त्रैमासिक पत्रिका ‘शाखें’ का 10 वर्षों तक सम्पादन किया। पचास से अधिक लोकप्रिय हिन्दी फ़िल्मों एवं म्यूज़िक अलबमों के लिए गीत-लेखन किया है तथा सभी प्रमुख ग़ज़ल गायकों ने उनकी ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी। अब तक उनके छह कविता-संग्रह प्रकाशित और समादृत हो चुके हैं। अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, सिंगापुर, मॉरीशस, सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, ओमान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल आदि अनेक देशों की अनेकानेक यात्राएँ कर चुके राहत साहब कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके थे।

निधन : 11 अगस्त, 2020

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