Manikarnika

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‘मणिकर्णिका’ डॉ. तुलसी राम की आत्मकथा का दूसरा खंड है। पहला खंड ‘मुर्दहिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि ‘मुर्दहिया’ को हिन्‍दी जगत की महत्तपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया गया। साहित्य और समाज विज्ञान से जुड़े पाठकों, आलोचकों व शोधकर्ताओं ने इस रचना के विभिन्न पक्षों को रेखांकित किया। शीर्षस्थ आलोचक डॉ. नामवर सिंह के अनुसार ग्रामीण जीवन का जो जीवन्‍त वर्णन ‘मुर्दहिया’ में है, वैसा प्रेमचन्‍द की रचनाओ में भी नहीं मिलता।

‘मणिकर्णिका’ में ‘मुर्दहिया’ के आगे का जीवन है। आज़मगढ़ से निकलकर लेखक ने क़रीब 10 साल बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में बिताए। बनारस में आने पर जीवन के अन्‍त की प्रतीक ‘मणिकर्णिका’ से ही लेखक का जैसे नया जीवन शुरू हुआ। लेखक के शब्दों में ‘गंगा के घाटों तथा बनारस के मन्दिरों से जो यात्रा शुरू हुई थी, अन्ततोगत्वा वह कम्युनिस्ट पार्टी के दफ़्तर में समाप्त हो गई। मार्क्सवाद ने मुझे विश्व-दृष्टि प्रदान की, जिसके चलते मेरा व्यक्तिगत दुःख दुनिया के दुःख में मिलकर अपना अस्तित्व खो बैठा। मुर्दहिया में जो विचार सुप्त अवस्था में थे, वे ‘मणिकर्णिका’ में विकसित हुए।’

लेखक ने अपने जीवनानुभवों का वर्णन करते हुए उस ख़ास समय को भी विश्लेषित किया है जिसके भीतर प्रवृत्तियों का सघन संघर्ष चल रहा था। बनारस जैसे इस कृति के पृष्ठों पर जीवन्‍त हो उठा है। इस स्मृति-आख्यान में कलकत्ता भी है, अनेक वैचारिक सन्‍दर्भों के साथ।

‘मणिकर्णिका; डॉ. तुलसी राम के जीवन-संघर्ष की ऐसी महागाथा है जिसमें भारतीय समाज की अनेक संरचनाएँ स्वतः उद्घाटित होती जाती हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 208p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Tulsi ram

Author: Tulsi ram

डॉ. तुलसी राम

डॉ. तुलसीराम, सेन्टर फ़ॉर रशियन एंड सेन्ट्रल एशियन स्ट्डीज, स्कूल ऑफ़ इन्टरनेशनल स्ट्डीज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत रहे और इस सेन्टर के अध्यक्ष भी रहे। वे विश्व कम्युनिस्ट आन्दोलन तथा रशियन मामलों के विशेषज्ञ भी थे। उक्त विषयों के साथ-साथ ट्रांस काकेशिया एवं बाल्टिक राज्यों की राजनीति पर उनके निर्देशन में लगभग 50 छात्रों ने एम-फ़‍िल. एवं पीएच.डी. की।

डॉ. तुलसीराम को अन्तरराष्ट्रीय बौद्ध आन्दोलन, दलित राजनीति तथा साहित्य में भी विशेषज्ञता हासिल थी। उन्होंने इन विषयों पर सैकड़ों लेख लिखे। एक कट्टर धर्मनिरपेक्ष विद्वान के रूप में मार्क्स, बुद्ध तथा डॉ. अम्बेडकर उनके हीरो रहे। उन्‍होंने 'अश्वघोष’ नामक प्रसिद्ध बुद्धिस्ट एवं साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन भी किया।

उनकी प्रमुख रचनाओं में 'अंगोला का मुक्ति संघर्ष’, 'सी.आई.ए. : राजनीतिक विध्वंस का अमरीकी हथियार’, 'द हिस्ट्री ऑफ़  कम्युनिस्ट मूवमेंट इन ईरान’, 'पर्सिया टू ईरान’ (वन स्टेप फ़ारवर्ड टू स्टेप्स बैक), 'आइडिओलॉजी इन सोवियत-ईरान रिलेशन्स’ (लेनिन टू स्टालिन), 'मुर्दहिया’, ‘मणिकर्णिका’ आदि शामिल हैं।

निधन : 13 फरवरी, 2015

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