Main Ravindranath ki Patni

Translator: Shubhra Upadhyaya
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Main Ravindranath ki Patni
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‘मैं रवीन्द्रनाथ की पत्नी’ एक ऐसी पुष्पलता की कहानी है जिसे एक विराटवृक्ष के साहचर्य में आने की कीमत अपने अस्तित्व को ओझल करके चुकानी पड़ी।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की पत्नी थीं—मृणालिनी देवी। उनका सिर्फ एक ही परिचय था कि वे विश्वकवि की सहधर्मिणी हैं। उनका जीवन मात्र अट्ठाइस वर्षों का रहा, जिनमें से उन्नीस वर्ष उन्होंने रवीन्द्रनाथ की पत्नी के रूप में जिये। रवीन्द्रनाथ की विराट छाया में मृणालिनी का अन्तर्जगत हमेशा अँधेरे में रहने को ही अभिशप्त रहा। रवीन्द्रनाथ से इतर उनका अपना कोई अस्तित्व मानो रहा ही नहीं।

लेकिन क्या सचमुच ऐसा ही था? क्या अपने निजी जीवन में मृणालिनी ने दाम्पत्य का सहज सुख पाया और अपने जीवनसाथी की सच्ची सहधर्मिणी हो पाई थीं? क्या उन्हें रवीन्द्रनाथ की पत्नी के रूप में प्रेमपूर्ण जीवन जीने को मिला था? इन तमाम सवालों का जवाब है यह उपन्यास जिसमें एक स्त्री के सम्पूर्ण मन-प्राण की व्यथा इस तरह अभिव्यक्त हुई है जो इतिहास को नई रोशनी में देखने की माँग करती है।

एक अविस्मरणीय कृति!

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 166p
Translator Shubhra Upadhyaya
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 19.5 X 13 X 1.5
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Ranjan bandyopadhyay

Author: Ranjan bandyopadhyay

रंजन बंद्योपाध्याय

महत्त्वपूर्ण बांग्ला उपन्यासकार रंजन बंद्योपाध्याय का जन्म 15 सितम्बर, 1941 को हुआ। कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य के व्याख्याता के रूप में उन्होंने अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत की। सोलह साल तक अध्यापन करने के बाद 1980 के दशक में पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा और ‘आजकल’ अखबार में सह-सम्पादक बने। इसके बाद ‘आनन्द बाजार’ और ‘संवाद प्रतिदिन’ में भी सह-सम्पादक रहे। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘कादम्बरी देवीर सुसाइड-नोट’, ‘आमि रवि ठाकुरेर बोउ’, ‘पुरोनो सेई पूजोर कथा’, ‘रवि ओ रानूर आदरेर दाग’, ‘प्राणसखा विवेकानन्द’, ‘प्लाता नदीर धारे’, ‘रस’, ‘मणिकांचन’, ‘म प्रियोतमासु’, ‘नष्ट पुरुष शरतचन्द्र’ आदि।

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