Mahatirth Ke Antim Yatri (Lhasa—Kaliashnath—Mansarovar)

Travelogue
Author: Bimal Dey
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Mahatirth Ke Antim Yatri (Lhasa—Kaliashnath—Mansarovar)
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सन् 1956 में तिब्बत का दरवाज़ा विदेशियों के लिए लगभग बन्‍द हो चुका था और राजनैतिक कारणों से भारत के साथ तिब्बत का सम्‍पर्क भी लगभग टूट चुका था। उन्हीं दिनों, बिना किसी तैयारी के, बिमल दे घर से भागे और नेपाली तीर्थयात्रियों के एक दल में सम्मिलित हो ल्हासा तक जा पहुँचे। उस समय उनकी उम्र मात्र पन्‍द्रह वर्ष थी। यात्रियों में वह नवीन मौनी बाबा। ल्हासा में उन्‍होंने तीर्थयात्रियों का दल छोड़ा, और वहाँ से अकेले ही कैलास खंड की ओर कूच कर गए। 'महातीर्थ के अन्तिम यात्री' में उसी रोमांचक यात्रा-अनुभाव का वर्णन है। बिमल दे ने स्वयं इसे ‘एक भिखमंगे की डायरी’ कहा है। किन्‍तु इस पुस्तक में मिलेगा तिब्बत का दैनंदिन जीवन तथा महातीर्थ का पूर्ण विवरण।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1994
Edition Year 2019, Ed. 4th
Pages 364p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Editorial Review

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Bimal Dey

Author: Bimal Dey

बिमल दे

जन्म सन् 1940, कोलकाता में। बचपन से घर से भागकर कई बार हिमालय का चक्कर लगाया। 1956 में जब तिब्बत का दरवाज़ा विदेशियों के लिए लगभग बन्‍द हो चुका था, एक नेपाली तीर्थयात्री दल में शरीक होकर तमाम अडचनों से जूझते हुए बिमल दे ल्हासा से कैलास तक की यात्रा कर आए।

वे 1967 में साइकिल पर विश्व-भ्रमण के लिए निकले। एक पुरानी साइकिल, जेब में कुल अठारह रुपए, मन में अदम्य उत्साह और साहस, यही उनकी पूँजी थी। रास्ते में छिटपुट काम कर रोटी का जुगाड़ करते, फिर आगे बढ़ते। इस तरह पाँच साल तक दुनिया की सैर करने के बाद वह 1972 में भारत लौटे। इन यात्राओं का विवरण ‘दूर का प्यासा’ नामक ग्रन्थ में उन्‍होंने 7 खंडों में लिखा है। वे 1972 से 1980 तक मुख्यतः पर्वतारोही पर्यटक के रूप में विश्व के पर्वतीय स्थलों की यात्रा करते रहे। 1981 से 1998 के बीच उन्‍होंने तीन बार उत्तरी ध्रुव और दो बार दक्षिणी ध्रुव की यात्रा की। उनकी प्रमुख पुस्‍तकें हैं—‘मैं हूँ कोलकाता का फॉरेन रिटर्न भिखारी’, ‘महातीर्थ के अन्तिम यात्री’, ‘महातीर्थ के कैलास बाबा’, ‘सूर्य प्रणाम’ आदि।

फ़्रांस की संस्थाओं ने तथा वाशिंगटन के नेशनल गेओग्राफ़‍िक सोसाइटी ने बिमल दे को कई बार सम्मानित किया है। वे अमेरिकी पोलर सोसाइटी के आजीवन सदस्य और ब्रितानवी पोलर सोसाइटी के परामर्शदाता रहे हैं। अपने ढंग का अनूठा पर्यटक और दार्शनिक होने के साथ ही बिमल दे एक मानव-प्रेमी हैं और वे निरन्‍तर जनहितकर कार्यों में जुटे रहते हैं।

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