Mahamoh : Ahilya Ki Jivani

Author: Pratibha Rai
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Mahamoh : Ahilya Ki Jivani
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यदि अहल्या ‘सौन्दर्य’ का प्रतीक है, इन्द्र ‘भोग’ का; गौतम ‘अहं’ का प्रतीक है तो राम ‘त्याग’ एवं ‘भाव’ के प्रतीक हैं। सौन्दर्य का केवल स्थूल रूप ही नहीं होता—सूक्ष्म तत्त्व भी होता है। सौन्दर्य का तत्त्व न समझ पाने पर सौन्दर्य और सौन्दर्यग्राही दोनों ही सौन्दर्य का खंडित रूप ही देख पाते हैं। सौन्दर्य मोह पैदा करता है, और मोहभंग भी करता है। इन्द्र का रूप मोह उत्पन्न करता है, जबकि राम के रूप ने अहल्या का मोहभंग किया है। मोह और मोहभंग के उतार-चढ़ाव के बीच आत्ममुग्धा अहल्या स्वयं ही बन गईं मोह का कारण और स्वयं ही मोह का लक्ष्य। इन्द्र मोह ने अहल्या को पाप की ओर प्रेरित किया था, जबकि राम-भाव ने प्रेरित किया था—मोक्ष की ओर। पाप से मोक्ष तक के उत्तरण पथ पर गौतम थे एक दंडाधिकारी प्रशासक मात्र। अहल्या की प्रेमाकांक्षा का रामाकांक्षा में बदल जाना ही अहल्या की तपस्या और मोक्ष है।

युगों से परे ‘महामोह’ है इन्द्र, गौतम और अहल्या के मोह एवं मोहभंग का आख्यान—भ्रान्ति और उत्थान की आख्यायिका।

 

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2012
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 480P
Translator Rajendra Prashad Mishra
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2.5
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Pratibha Rai

Author: Pratibha Rai

डॉ. प्रतिभा राय

 

डॉ. प्रतिभा राय ने रेवेंसा कॉलेज, भुवनेश्वर से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्नातकोत्तर एवं पीएच.डी. हेतु शिक्षा शास्त्र उनके अध्यायन का क्षेत्र रहा। कई वर्षों तक रेवेंसा कॉलेज में अध्यापन। जे.बी. कॉलेज में शिक्षा शास्त्र विभाग की अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उड़ीसा लोक सेवा आयोग की सदस्य रहीं। अनेक सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं से सम्बद्ध।

प्रकाशित कृतियाँ : अब तक 20 उपन्यास और 24 कहानी-संग्रहों के साथ कविता, यात्रा-वृत्तान्त एवं निबन्ध की अनेक पुस्तकें प्रकाशित। अंग्रेज़ी, हंगेरियन एवं प्रमुख भारतीय भाषाओं में कृतियों का अनुवाद।

सम्मान/पुरस्कार : ‘पद्मश्री’ (2007), ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘उड़ीसा साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘अमृत कीर्ति पुरस्कार’, ‘विषुव पुरस्कार’, ‘कथा भारती उपाधि’, ‘कथा पुरस्कार’ और ‘सारला पुरस्कार’।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

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