Madhyakalin Bharat Ka Arthik Itihas

Edition: 2023, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
As low as ₹221.25 Regular Price ₹295.00
25% Off
In stock
SKU
Madhyakalin Bharat Ka Arthik Itihas
- +
Share:

यह पुस्तक नवीनतम स्रोत सामग्री को सन्दर्भित करते हुए लिखी गई है। लेखक ने बड़ी कुशलता के साथ सन्दर्भ ग्रन्थों को समन्वयित किया है कि विशेषज्ञों के अलावा साधारण पाठकों को भी आख्यान बोधगम्य हो सके।

इस पुस्तक में मुगलों की नई काराधान व्यवस्था के आने से कृषि के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली संकटपूर्ण परिस्थितियों को उजागर किया है। लेखक का मानना है कि इस संकट के बावजूद ग्रामीण घरों में सूत कातने और कपड़ा बुनने की परम्पराएँ कायम रहीं। किन्तु मुग़ल नीतियों का दूरगामी परिणाम यह हुआ कि कृषि और शिल्प दो अलग-अलग व्यवसायों के रूप में नज़र आने लगे। अध्याय के अन्त में लेखक ने परम्परागत शिल्पों को स्वतन्त्र व्यवसाय के रूप में प्रस्तुत कर लम्बे अरसे से चली आ रही भ्रान्तियों को दूर किया है। शिल्प उत्पादन के सम्बन्ध में विस्तृत वृत्तान्त मिलता है।

दक्षिण भारत के राजस्व इतिहास को समाहित कर इस पुस्तक को पूर्णतः समावेशी बना दिया गया है। पाँचवें अध्याय में मध्यकालीन कराधान की व्यवस्था, शहरी उत्पादन, सिक्कों के प्रकार और प्रसार का उल्लेख है। मध्यकालीन भारत में नाप-तौल की प्रणालियों, मजदूरी और उत्पादकों पर विदेशी पूँजी के बढ़ते दबाव से सम्बन्धित है। लेखक ने तालिकाओं और आँकड़ों की सहायता से व्यापार और व्यवसायों के समक्ष बढ़ती चुनौतियों को स्पष्ट किया है।

विश्वास है कि सुधी पाठकों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे पाठकों को यह रचना समान रूप से पसन्द आएगी।

ललित जोशी

प्रोफेसर, इतिहास विभाग

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 239p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Madhyakalin Bharat Ka Arthik Itihas
Your Rating
Sunil Kumar Singh

Author: Sunil Kumar Singh

सुनील कुमार सिंह

सुनील कुमार सिंह जनपद ग़ाज़ीपुर (उ.प्र.) के प्रखण्ड करण्डा में स्थित एक छोटे से गाँव लीलापुर के मूल निवासी हैं। इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग़ाज़ीपुर से पूर्ण करने के उपरान्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कला संकाय से स्नातक, परास्नातक एवं डी. फिल. की उपाधि अर्जित की। इन्होंने मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ख्यातिलब्ध विद्वान प्रो. ललित जोशी के कुशल पर्यवेक्षण में ‘राष्ट्र की सांस्कृतिक अस्मिता-प्रयाग संगीत समिति के विशेष सन्दर्भ में (1926-1947)’ विषय पर शोध कार्य सम्पन्न किया। ज्ञात हो कि प्रयाग संगीत समिति, संगीत की शिक्षा देने वाली विश्व की सबसे बड़ी संस्था है। इस ऐतिहासिक व विशाल संस्था पर शोध करने वाले ये प्रथम शोधार्थी रहे।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top