Maa Maati Manush

Poetry
Author: Mamta Banerjee
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Maa Maati Manush
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ये ममता बनर्जी की कविताएँ हैं; ममता बनर्जी, जो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और ‘फ़्रायर ब्रांड’ नेता, जिन्हें उनके दो टूक लहज़े और अक्सर ग़ुस्से के लिए भी जाना जाता है।

इन कविताओं को पढ़कर आश्चर्य नहीं होता। दरअसल सार्वजनिक जीवन में आपादमस्तक डूबे किसी मन के लिए बार-बार प्रकृति में सुकून के क्षण तलाश करना स्वाभाविक है। लेकिन ममता जी प्रकृति की छाँव में विश्राम नहीं करतीं, वे उससे संवाद करती हैं। प्रकृति के रहस्यों को सम्मान देती हैं, और मनुष्य मात्र से उस विराटता को धारण करने का आह्वान करती हैं जो प्रकृति के कण-कण में विद्यमान है।

उनकी एक कविता की पंक्ति है ‘अमानवीयता ही है सभ्यता की नई सज्जा’—यह उनकी राजनीतिक चिन्ता भी है, और निजी व्यथा भी। और लगता है, इसका समाधान वे प्रकृति में ही देखती हैं। सूर्य को सम्बोधित एक कविता में कहा गया है : ‘पृथ्वी को तुम्हीं सम्हाल रखोगे/मनुष्यता को रखो सर्वदा पहले/जाओ मत पथ भूल’।

वे प्रकृति में जैसे रच-बस जाती हैं। उनका संस्कृति-बोध गहन है और मानवीय संवेदना का आवेग प्रखर। ‘एक मुट्ठी माटी’ शीर्षक कविता में जैसे यह सब एक बिन्दु पर आकर जुड़ जाता है—‘एक मुट्ठी माटी दे न माँ रे/मेरा आँचल भरकर/मीठापन माटी का सोने से शुद्ध/देखेगा यह जग जुड़कर/थोड़ा-सा धन-धान देना माँ/लक्ष्मी को रखूँगी पकड़/नई फसल से नवान्न करूँगी/धान-डंठल सर पर रख।’

कहने की आवश्यकता नहीं कि इन कविताओं में हम एक सफल सार्वजनिक हस्ती के मन के एकान्त को, और मस्तिष्क की व्याकुलता को साफ़-साफ़ शब्दों में पढ़ सकते हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 184p
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Mamta Banerjee

Author: Mamta Banerjee

ममता बनर्जी

उन्होंने जीवन-भर केवल देना ही चाहा, बदले में चाहा केवल जनता का प्यार। किशोरावस्था से ही उनके जीवन-युद्ध का आरम्भ हुआ, जो अब तक जारी है। टाली के छतवाली झोंपड़ी में जीवन की शुरुआत करनेवाली हमारी बंगाल की कन्या का अन्तहीन संघर्ष...

उनकी लड़ाई अन्याय, शोषण और शोषक-शाह के प्रति। तूफ़ानों से लड़नेवाली इस जननेत्री के लड़ाकू अन्दाज़ के पीछे छिपी हुई है कोमल संवेदनाओं वाली एक कवयित्री, जो समय-समय पर गीत भी गाती हैं, चित्र बनाने के लिए तूलिका भी उठा लेती हैं और दिन-भर उत्ताल राजनीति में डूबी रहने के पश्चात् रात को फिर निबन्ध भी लिखती हैं।

वे एक ही हैं—जनतंत्र की पुजारन—ममता बनर्जी। उन्नति के पक्ष में उनकी कोशिश अलग से हर तरफ़ दिखाई पड़ती है बंगाल में। उनके द्वारा शुरू की गई परियोजना 'कन्याश्री' (बालिकाओं के लिए 18 वर्ष की उम्र तक छात्रवृत्ति) को यूनेस्को की ओर से पुरस्कृत किया गया सन् 2017 में। कविता, निबन्ध, आत्मकथा, आलोचना, कहानी आदि सब मिलकर उनकी प्रकाशित पुस्तकों की संख्या भी कम नहीं—पैंतालीस है। 

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