Mamta Banerjee
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ममता बनर्जी
उन्होंने जीवन-भर केवल देना ही चाहा, बदले में चाहा केवल जनता का प्यार। किशोरावस्था से ही उनके जीवन-युद्ध का आरम्भ हुआ, जो अब तक जारी है। टाली के छतवाली झोंपड़ी में जीवन की शुरुआत करनेवाली हमारी बंगाल की कन्या का अन्तहीन संघर्ष...
उनकी लड़ाई अन्याय, शोषण और शोषक-शाह के प्रति। तूफ़ानों से लड़नेवाली इस जननेत्री के लड़ाकू अन्दाज़ के पीछे छिपी हुई है कोमल संवेदनाओं वाली एक कवयित्री, जो समय-समय पर गीत भी गाती हैं, चित्र बनाने के लिए तूलिका भी उठा लेती हैं और दिन-भर उत्ताल राजनीति में डूबी रहने के पश्चात् रात को फिर निबन्ध भी लिखती हैं।
वे एक ही हैं—जनतंत्र की पुजारन—ममता बनर्जी। उन्नति के पक्ष में उनकी कोशिश अलग से हर तरफ़ दिखाई पड़ती है बंगाल में। उनके द्वारा शुरू की गई परियोजना 'कन्याश्री' (बालिकाओं के लिए 18 वर्ष की उम्र तक छात्रवृत्ति) को यूनेस्को की ओर से पुरस्कृत किया गया सन् 2017 में। कविता, निबन्ध, आत्मकथा, आलोचना, कहानी आदि सब मिलकर उनकी प्रकाशित पुस्तकों की संख्या भी कम नहीं—पैंतालीस है।