Kudrat Rang-Birangi

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Kudrat Rang-Birangi

भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रवाह को समझना, किसी नदी के प्रवाह को समझने जैसा ही जटिल है। किसी नदी के उद्गम, उसकी विभिन्न शाखाओं और प्रशाखाओं की भाँति भारतीय शास्त्रीय संगीत के घराने, घरानों का उद्गम, घरानों के स्रष्टा, वाहक, गुरु, परम्परा, राग, रागरूप, श्रुति, स्मृति, आरोह, अवरोह, वादी, विवादी, समवादी इत्यादि शब्दों के चलते ये पूरा विषय आम पाठक के लिए पहली नज़र में अत्यन्त जटिल प्रतीत होता है। लेकिन इस पुस्तक में शताब्दी के श्रेष्ठ कलाकारों और संगीत घराने के इतिहास एवं उनकी विशेषताओं, एक घराने के साथ दूसरे घरानों की तुलना, राग-रागिनियों के सूक्ष्मविश्लेषण आदि विषयों को अत्यन्त रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

यह रोचकता ही कुमार प्रसाद मुखर्जी के लेखन की विशेषता है या कहा जा सकता है कि यह उनके लेखन का एक विशेष घराना है। लेखक स्वयं एक संगीत घराने से सम्बन्धित थे और ख़ुद भी विख्यात कलाकार रहे। अपने बचपन के दिनों से ही संगीत के मूर्धन्य विद्वानों को सामने बैठकर सुनने का मौक़ा उन्हें मिला। इसके साथ-साथ वे विदग्ध पाठक और असाधारण गुरु भी थे। प्रस्तुत पुस्तक में उनकी इन सभी प्रतिभाओं की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है, इसीलिए भारतीय संगीत और उससे जुड़े विभिन्न गम्भीर विषय पाठकों के सामने अत्यन्त सरल रूप में प्रस्तुत होते हैं।

भारतीय शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को राजाओं-महाराजाओं का आश्रय प्राप्त था, इसके अलावा संगीत कलाकारों के मनमौजी स्वभाव, उनके जीवन की रोचक घटनाओं के चलते संगीतज्ञ आम जनता के लिए आकर्षण का केन्द्र बने रहते थे। इस पुस्तक में विभिन्न स्थानों पर ऐसी रोचक घटनाओं का वर्णन भी है। लेखक के पिता धूर्जटि प्रसाद मुखोपाध्याय शास्त्रीय संगीत के प्रख्यात आलोचक व लेखक थे। स्वयं भी एक संगीतज्ञ होने के चलते लेखक की यह पुस्तक न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत पर एक प्रामाणिक ग्रन्थ है, बल्कि अपने आपमें भारतीय शास्त्रीय संगीत पर एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2002, Ed. 1st
Pages 324p
Translator Deepali Naag
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Author: Kumar Prasad Mukherji

कुमार प्रसाद मुखर्जी

जन्म : फरवरी, 1927; इलाहाबाद (उ.प्र.)।

शिक्षा : लखनऊ से; अर्थशास्त्र व समाजशास्त्र में एम.ए.। इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पूल के अफ़सर। सरकारी नौकरी के आख़ि‍री दिनों में 1967 से 1984 तक क्रमशः एन.सी.डी.सी., कोल माइंस अथॉरिटी व कोल इंडिया लिमिटेड के कॉमर्शियल डायरेक्टर रहे। नौकरी से अवकाश लेने के बाद भी कई बड़ी कम्‍पनियों के साथ जुड़े रहे। वे पश्चिम बंगाल राज्य संगीत अकादमी के उपाध्यक्ष भी थे।

संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा रवीन्द्रलाल राय से प्राप्त की। उसके उपरान्त उस्ताद मुस्ताक हुसैन ख़ाँ से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। उनके गायन में आफ़ताब-ए-मौसिकी उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ का प्रभाव स्पष्ट रूप से था। उन्‍होंने ख़ाँ साहब के साले उस्ताद अता हुसैन ख़ाँ व भांजे उस्ताद लताफ़त हुसैन ख़ाँ से भी काफ़ी दिनों तक संगीत की शिक्षा प्राप्त की। भारत के विभिन्न शहरों के विख्यात संगीत-कार्यक्रमों में लगातार हिस्सेदारी करते रहे। संगीतज्ञ के रूप में कलकत्ता के संगीत रिसर्च अकादमी, शिमला के इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज, मद्रास के अकादमी व त्यागराज विद्वत् समाज और बेंगलुरु के गायन समाज व गाना कला परिषद् में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए। बेंगलुरु के गाना कला परिषद् ने सन् 1972 में इनको ‘पंडित’ उपाधि से सम्मानित किया। पुस्तक ‘कुदरत रंग-बिरंगी’ के लिए ‘रवीन्द्र पुरस्कार’ से सम्मानित।

संगीत के अलावा क्रिकेट, अध्ययन, पर्यटन और फ़ोटोग्राफ़ी का शौक़। कलकत्ता के अकादमी ऑफ़ फ़ाइन

आट्‍र्स में कई फ़ोटो प्रदर्शनियों का आयोजन।

निधन : 14 मई, 2006

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