Koi Hai Jo : Aur Anya Kahaniyan

Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Koi Hai Jo : Aur Anya Kahaniyan
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एक बड़े सामाजिक-राजनीतिक विज़न के साथ लिखी जाती कोई है जो की कहानियाँ भारतीय उजाड़ से गुज़रने की यातना देती हैं जिसमें एक प्रलम्बित आलाप की साँसहीनता होती है जो एक मन्द्र भाषिक नितान्तता और सांगीतिकता में ढलती जाती है : इसमें ढलती और अकेला छोड़ जाती साँझ का नागरिक अवसाद होता है और फैलते तिमिर का संशय। पात्र-प्रमुख और अन्तर्वस्तुमयी कथाएँ कहते हुए देवी प्रसाद मिश्र दुविधा और द्वन्द्व की अन्तर्यात्रा को रुकने नहीं देते और किसी भी पॉपुलिस्ट अन्त का निषेध करते हैं। देवी अपनी कहानियों में प्रकट और अप्रकट हिंसा को और हवाओं में घूमती भय और संशय की थरथराहट को और उजाले को ग्रसती अँधेरे की छायाओं को विचलित करनेवाले मर्म के साथ बुनते हैं कि जैसे भारतीय हताशा को कहने वाली किसी फ़िल्म को वह फ़्रेम-दर-फ़्रेम विनिर्मित कर रहे हों। कहन की प्रविधि में प्राय: आत्मकथात्मक होते देवी क्षत-विक्षत होती भारतीय नागरिकता के अनन्य प्रवक्ता हैं। तमाम तरह की त्रासदियों और ख़ून में लिथड़ते नैरेटिव के बावजूद देवी की कहानियों को ट्रैजिक विज़न में परिघटित करना सरलीकरण होगा। उन्हीं की कहानी सुलेमान कहाँ है की तर्ज़ पर कहा जा सकता है कि देवी की कहानियाँ पूछती हैं कि कहाँ हैं न्यायसम्मत, विवेकसम्मत, समतामूलक, भयमुक्त और अहिंसक संरचनाएँ। कवि देवी प्रसाद मिश्र की कहानियाँ कविता और उसके कारोबार से दूर नहीं हो पातीं—यह कथाओं की अन्तर्लय में ही नहीं, उनकी वस्तु और काव्योन्मुख भाषा में भी विपुलता के साथ उपस्थित रहता है। इस संधि को देवी ने अपनी किताब मनुष्य होने के संस्मरण में बहुधा प्रकट कर दिया था जो इन लम्बी कहानियों में विदीर्ण करने वाली आयामिता, प्रवेग, आवेश और अफ़सुर्दगी के साथ मौजूद है। हिन्दी कहानी के प्रतिष्ठानों और उसके हो-हल्ले, समीकरण-गणित से बाहर बैठे अदूषित देवी की कथाओं को पढ़ना उत्पीड़न ही नहीं, अवरुद्ध परिवर्तन से उठती विकलता को जानना-समझना भी है। 

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Devi Prasad Mishra

Author: Devi Prasad Mishra

देवी प्रसाद मिश्र

कवि-कथाकार-विचारक-फ़िल्मकार देवी प्रसाद मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश में प्रतापगढ़ ज़िले के रामपुर कसिहा नामक गाँव में अपनी नानी के घर में हुआ। बचपन पिता के स्थानांतरणों के साथ ग्वालियर, रीवा, इलाहाबाद में बीता। पढ़ने में वह हर कक्षा में अव्वल रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए करने तक। पता नहीं क्या ख़ब्त थी कि पूरे दो साल के अध्ययन के बाद एम.ए. (इतिहास) की फ़ाइनल परीक्षा में नहीं बैठे। इस तरह भटकने का सर्टिफ़िकेट लेकर बेमन कभी यहाँ, कभी वहाँ इलाहाबाद, दिल्ली और बंबई में पत्रकारिता के संस्थानों में कुछ-कुछ समय काम किया। कॉलम लिखे। फिर बचपन के दोस्त निशीथ की संस्था 'नॉलेज लिंक्स' में जीविका के निमित्त ग्रामीण सामुदायिक जीवन को लेकर उपयोगितावादी वृत्तचित्र बनाते रहे। तीन दशकों से भी ज़्यादा वक़्त हो गया कि जब पहली और एक मात्र कविता की किताब प्रार्थना के शिल्प में नहीं आयी थी। इस तरह देवी हिन्दी में लगभग बिना किताब का लेखक होकर काम करते रहे हैं जिसके लिए हिन्दी विवेक के प्रति वह अवनत हैं। प्रकाशित होने की ललक से हीन वह किताबों को अब धीरे-धीरे इसलिए छपवाने के लिए पर्युत्सुक हैं कि उनके न रहने पर कोई दूसरा उनकी किताबों को संपादित करते हुए रचनाओं के भिन्न-भिन्न संस्करणों के बिखराव में उलझकर रचनाओं के अशोधित वर्ज़न किताबों में न डाल दे। 'जिधर कुछ नहीं' इस कड़ी की ही काव्य-पुस्तक है। उन्हें कविता के लिए 'भारतभूषण स्मृति सम्मान', 'शरद बिल्लौरे सम्मान' और 'संस्कृति सम्मान' मिला और हेम ज्योतिका के साथ बनाये वृत्तचित्र के लिए 'राष्ट्रीय सम्मान' जिसे उन्होंने एक मोड़ पर सरकार के फ़ासिस्टी रवैये के विरोध में वापस कर दिया। इलस्ट्रेटेड वीकली ने उन्हें 1993 में देश के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले 13 अग्रणी लोगों में शामिल किया। उनकी आजीविका का आधार फ़िल्में बनती रही हैं। उनकी फ़िल्म सतत  को कान के शॉर्ट फ़िल्म कॉरनर में शामिल किया गया और निष्क्रमण नाम की फ़िल्म को फ़्रांस की गोनेला कंपनी ने विश्वव्यापी वितरण के लिए स्वीकार किया। ये दोनों ही फ़िल्में गुना ज़िले के ग़ैरपेशेवर आदिवासी बच्चों को चरित्र बना कर बनायी गयीं। यह सब इसलिए कि नाम की उनकी फ़िल्म कवयित्री ज्योत्सना पर बनायी गयी डॉक्यूमेंट्री है जिन्होंने हिन्दी कविता की मुख्यधारा को धता बताते हुए एक असहमत और आज़ाद जीवन जिया और ज़िंदगी को उसकी आत्यंतिकता में समझने की कोशिश में हँसी-खेल में उसे ख़त्म कर दिया। उन्होंने नज़ीर अकबराबादी और महादेवी वर्मा पर आदमीनामा और पंथ होने दो अपरिचित  शीर्षक से दो शैक्षिक वृत्तचित्र केंद्रीय हिन्दी संस्थान के लिए बनाये। 

देवी ग़ाज़ियाबाद में राज नगर एक्सटेंशन में रहते हैं।

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