Kisi Rang Ki Chhaya

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Kisi Rang Ki Chhaya

सुन्दर चन्द ठाकुर का पहला कविता-संग्रह ‘किसी रंग की छाया’ अनुभव-सघनता और भाषाई-सजगता दोनों स्तरों पर एक कवि की बुनियादी बेचैनी को दर्ज करता है। सुन्दर की ये कविताएँ संख्या में अट्ठावन हैं लेकिन उनके सरोकारों को गिनना कठिन है। वे स्वाभाविक तौर पर प्रेम, अच्छाई, मनुष्यता और एक बेहतर संसार को तरह-तरह से प्रकट करती हैं या उनके कम होते जाने या न होने का शोक मनाती हैं, जहाँ उनके होने की जरा भी सम्भावना बची हो। यह अकारण नहीं है कि सुन्दर अपनी कविता में बचपन, नींद, घर-परिवार, नदी, जंगल, अभयारण्य आदि परिचित चीजों से होते हुए इतिहास, भूगोल, गणित, भौतिकी और गृह विज्ञान जैसे अपरिचित विषयों तक चले जाते हैं और उनके माध्यम से आज की किसी न किसी मानवीय परिस्थिति पर टिप्पणी करते हैं जो हमारे अन्तस को झकझोरते हुए एक नयी सम्वेदना से भी हमारा परिचय कराती हैं। अपनी गहरी सम्वेदना, सजग दृष्टि और तीक्ष्ण अनुभूतियों के कारण सुन्दर चन्द ठाकुर नदी के भीतर ‘बहती हुई एक और नदी’ को पहचानते हैं और इतिहास के स्नानागारों में 'सदियों के सूखे हुए पानी' को भी तैरता देख लेते हैं। इस संग्रह की ज़्यादातर कविताओं में पहाड़ के आवेग और मैदान की थिरन को हम एक साथ महसूस कर सकते हैं जो शिल्प के स्तर पर कहीं न कहीं सोच की उड़ान और भाषा के संयम में रूपान्तरित हो जाती है। ‘किसी रंग की छाया’ में आशा और निराशा के बीच अनुभवों का एक पूरा वर्ण क्रम है और यह पहचानने की शिद्दत भरी कोशिश है कि वह रंग कौन-सा है और उसकी कैसी छाया है या यह कैसी छाया है और उसका कौन-सा रंग है। यही कोशिश एक सच्चे कवि की पहचान होती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2001
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 107p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Sunder Chand Thakur

Author: Sunder Chand Thakur

सुन्दर चन्द ठाकुर

जन्म : 11 अगस्त, 1968; उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में।

शिक्षा : 1990 में विज्ञान में ग्रेजुएशन। बाद में मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा भी। 1992 में सेना में कमीशन। मार्च 1992 से अप्रैल 1997 तक भारतीय सेना में। इस दौरान पन्द्रह महीने के लिए सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र शान्ति सेना के सदस्य के रूप में तैनाती।

उन्होंने अपने साहित्यिक लगाव के चलते ही सेना से ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ली और दिल्ली में टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह में प्रशासनिक पद पर कार्य सँभाला। 2003 में वह प्रशासनिक पद छोड़कर ‘नवभारत टाइम्स’ से जुड़े। 2010 में उनका मुम्बई तबादला जहाँ वह आज भी ‘नवभारत टाइम्स’, मुम्बई के स्थानीय सम्पादक हैं।

सेना छोड़कर आने के बाद पंकज बिष्ट द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका ‘समयांतर’ से जुड़े, जिसके लिए उन्होंने कई वर्षों तक विशेषांकों के आधार लेख, समीक्षाएँ लिखने और अनुवाद का काम किया। इस वक़्त तक उनकी कविताएँ सभी प्रमुख साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थीं। 2001 में उनका पहला कविता-संग्रह ‘किसी रंग की छाया’ प्रकाशित। उनकी कहानियाँ ‘हंस’, ‘नया ज्ञानोदय’, ‘वागर्थ’ आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। ‘हंस’ में उनका लेख ‘धर्म, सेक्स और नैतिकता’ चर्चित। 2008 में उन्होंने रूस के चर्चित कवि येव्गिनी येव्तुशेंको की जीवनी का अनुवाद किया, जो ‘एक अजब दास्ताँ’ के नाम से प्रकाशित हुआ। 2009 में उनका दूसरा संग्रह ‘एक दुनिया है असंख्य’ आया। उनकी कविताओं के जर्मन, बांग्ला, मराठी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं में अनुवाद हुए हैं।

सम्मान : 2001 में भारतीय भाषा परिषद का ‘युवा पुरस्कार’, 2003 में ‘भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार’ और ‘इन्दु शर्मा अन्तरराष्ट्रीय कथा सम्मान’।

क्रिकेट में विशेष रुचि रखनेवाले सुन्दर चन्द ठाकुर ‘नवभारत टाइम्स’ के लिए पिछले कई वर्षों से ‘दूसरा पहलू’ शीर्षक से चर्चित कॉलम लिख रहे हैं। मुम्बई में उनका शहर के जीवन पर आधारित कॉलम ‘मुम्बई मेरी जान’ भी लोकप्रिय है।

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