इस उपन्यास की कथा साफ़ तौर से एक रूपक है जो कोरियाई राजनीति से जुड़ी है। यह कोरिया में एक अधिनायकवादी राज्य शैली से अनिश्चित क़िस्म के प्रजातंत्र में बदलने की गाथा है। इसमें ताक़त के भयंकर दुरुपयोग, आम जन के द्वारा उसे स्वीकार कर चुपचाप सहते रहने की मनोदशा, प्रजातंत्र की ओर उन्मुख करनेवाली जागृति को तो साक्षात् किया ही गया है लेकिन बड़ी बात यह है कि अधिनायक की हार के बावजूद अधिनायकवादी प्रवृत्ति के प्रति सदा सावधान बने रहने की ओर सशक्त संकेत भी किया गया है।

इस उपन्यास के दो स्तर हैं : एक सीधा-सादा और दूसरा सांकेतिक। सीधे-सीधे अर्थ के अनुसार यह कक्षा के एक ऐसे बिगड़ैल मॉनीटर की कहानी है जो अपनी ताक़त और अपने साम्राज्य का झंडा बनाए रखने के लिए कितने ही तरह के हथकंडे अपनाता है। सांकेतिक अर्थ के अनुसार यह मनुष्य के भीतर की एक ऐसी प्रवृत्ति को सामने लाता है जो ताक़तवर बनने की भरपूर कोशिश करती है। उपन्यास आत्मकथात्मक शैली में है जिसका ‘विकृत नायक’ अर्थात् ‘खलनायक’ ‘ओम सोकदे’ है।

माना जाता है कि यह उपन्यास 1980 के ग्वांगजू सामूहिक हत्याकांड से प्रेरित होकर लिखा गया था जिसमें प्रजातंत्र के लिए आन्दोलन कर रहे निहत्थे लोगों को दक्षिण कोरियाई सैनिकों (जिन्हें उत्तर कोरिया से लोहा लेने के लिए प्रशिक्षण दिया गया था और जो शायद युद्ध न होने की स्थिति में ऊब चुके थे) ने मौत के घाट उतारा था।

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Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 96p
Translator Divik Ramesh
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Yi Mun Yol

Author: Yi Mun Yol

यी मुन यॉल

जन्म : 1948। अनेक पुस्तकों के रचयिता यी को अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं : ‘खलानायक’ पर इन्हें 1987 का ‘यी सेंग’ पुरस्कार मिला था। अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों में ‘हुन्दे मुनहाक प्राइज’ (1992), ‘21वीं शताब्दी साहित्य एवार्ड’ (1998), ‘द नेशनल अकादमी (कला) एवार्ड’ (2009), ‘दोंगनी साहित्य प्राइज’ (2012), हल्लयूम विश्वविद्यालय (Hallyum University) द्वारा विदेशों में कोरियाई साहित्य को समृद्ध बनाने की दिशा में योगदान के लिए प्रदत्त 9वाँ ‘इल सांग (II Song) एवार्ड’ (11 मार्च, 2014) आदि सम्मिलित हैं।

अब तक उनके कई उपन्यास और उपन्यासिकाएँ और कहानियाँ प्रकाशित हैं। एशिया और यूरोप की अनेक भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद हो चुका है।

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