Kamayani : Moolpath Evam Teeka

Edition: 2005, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Kamayani : Moolpath Evam Teeka
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‘कामायनी’ एक महाकाव्य है। इसकी प्रधान पात्र श्रद्धा है। काम की पुत्री होने के कारण उसका दूसरा नाम कामायनी भी है। प्रसाद जी ने इस गरिमामयी नारी को सम्मान देने के लिए ही अपने महाकाव्य का नाम ‘कामायनी’ रखा है। इसकी कथा का आधार ‘ऋग्वेद’, ‘छांदोग्य’ ‘उपनिषद्’, ‘शतपथ ब्राह्मण’ और ‘श्रीमद्भागवत’ है। घटनाओं का चयन प्रसाद ने मुख्यत: ‘शतपथ ब्राह्मण’ से किया है। उसमें मनु, श्रद्धा, इड़ा, किलात और आकुलि के नाम आए हैं। जल-प्लावन की घटना का उसमें कुछ विस्तार से वर्णन है। मनु देव-जाति में उत्पन्न होने पर भी मानवों के आदि पुरुष हैं। इसी से उनमें देवत्व और मानवत्व के सम्मिलित संस्कार पाए जाते हैं। इस पात्र की महत्ता इस बात में निहित है कि उसके माध्यम से देव-संस्कृति के विनाश के उपरान्त मानव-सभ्यता के विकास की कहानी कही गई है। ‘कामायनी’ में मनु, श्रद्धा और इड़ा, मन, हृदय और बुद्धि के प्रतीक हैं। इस दृष्टि से यह कृति अन्त:करण में वृत्तियों के विकास की गाथा भी कहती है। ‘कामायनी’ में सर्गों का नामकरण इन्हीं वृत्तियों के आधार पर हुआ है। यह मानवीय मनोविकारों का विराट रूपक है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2005
Edition Year 2005, Ed. 1st
Pages 343p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Vishvambhar ‘Manav’

Author: Vishvambhar ‘Manav’

विश्‍वम्‍भर मानव

विश्‍वम्‍भर ‘मानव’ का जन्‍म 2 नवम्‍बर, 1912 को बुलन्‍दशहर ज़‍िले के डिवाई नामक क़स्‍बे में हुआ था। सन् 1938 में उन्‍होंने आगरा विश्‍वविद्यालय से हिन्‍दी से एम.ए. किया और प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम उत्‍तीर्ण हुए।

उनके जीवन का अधिकांश समय अध्‍यापन में व्‍य‍तीत हुआ। पन्‍द्रह वर्ष उन्‍होंने क्‍वींस कॉलेज, काशी; आगरा कॉलेज, आगरा; गोकुलदास गर्ल्‍स कॉलेज, मुरादाबाद तथा इलाहाबाद डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद जैसी प्रसिद्ध संस्‍थाओं में हिन्‍दी प्रवक्‍ता के रूप में कार्य किया। दस वर्ष आकाशवाणी के इलाहाबाद-लखनऊ केन्‍द्रों से सम्‍बद्ध रहे। इसके अतिरिक्‍त हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन, लखनऊ सचिवालय, किताब महल, इलाहाबाद तथा एक हिन्‍दी साप्‍ताहिक में भी विविध रूपों में काम किया।

उनकी लगभग पैंतीस पुस्‍तकें प्रकाशित हैं, जिनमें आलोचना, उपन्‍यास, नाटक, कविता, डायरी, गद्यगीत आदि सम्‍म‍िलित हैं। उनके युग के चार प्रसिद्ध छायावादी कवियों—प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी पर स्‍वतंत्र समीक्षा ग्रन्‍थ लिखनेवाले वे पहले आलोचक थे। उनके ये ग्रन्‍थ समय-समय पर उत्‍तर-दक्षिण के बारह विश्‍वविद्यालयों में विशेष अध्‍ययन के लिए स्‍वीकृत रहे।

1973 में नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के उपरान्‍त उनका जीवन केवल स्‍वतंत्र लेखन को समर्पित रहा। 1980 में उनका देहावसान हुआ। 

 

 

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