लीलाधर मंडलोई वैसे रचनाकारों में हैं जो धरती के किसी भी हिस्से में अपने रहवास को एक लम्बे कालखंड में, अपनी ऐन्द्रियता से आत्मसात कर आश्चर्यजनक ढंग से स्थानीय हो उठते हैं। ऐसा उन्होंने पातालकोट, छिंदवाड़ा, गोंडवाना (कान्हा अभ्यारण्य), भोपाल और एक हद तक दिल्ली में रहते हुए सम्भव किया है। देखा जाए तो उनका यह आश्चर्य ‘काला पानी’ अंदमान निकोबार द्वीप समूह से आरम्भ हुआ। ‘काला पानी’ से ही उनकी पहचान पहले एक कवि और फिर फीचर लेखक के रूप में हुई। पाठकों को स्मंरण होगा कि इस उपेक्षित भूखंड की दुर्लभतम् नेग्रिटोव्ह और मंगोल मूल की जनजातियों तथा समुद्र और वन्य जीवन पर फीचर शृंखला और कविताएँ देने वाले वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्हें ‘जनसत्ता’ और ‘नवभारत टाइम्स’ सरीखे अख़बारों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया। इस दृष्टि से वे इस क्षेत्र में अग्रणी माने जाते हैं। ग्रेट अंदमानी, ओंगी शोम्पेन, निकोनारी जनजातियों की लोक-कथाओं को भी हिन्दी में लाने वाले, वे पहले रचनाकार हैं। कहना न होगा कि उनका ‘कविमन’ ही वह स्रोत है जो उन्हें लोक-कथा, लोक-गीत, यात्रा-वृत्तांत, डायरी, मीडिया, रिपोर्ताज व आलोचना में ले जाता है। इधर जबकि भाव और मन की जगह वस्तु, कला और फॉर्म केन्द्रीय पद हैं, तब एक ऐसे लेखक को पढ़ना परम्परा पाठ के तत्त्वों के समीप पहुँचना है।
‘काला पानी’ में यहाँ प्रस्तुत कविता और गद्य में जो है, वह असल में विविध विधाओं में ‘कविमन’ की अभिव्यक्ति है। ‘काला पानी’ की विविध मार्मिक छवियों को कुछेक विधाओं में सहेजने की ईमानदार कोशिश इसे एक अनूठी कृति बनाती है। वस्तुतः यह एक दिलचस्प किंतु आत्मीय कोलाज है। ‘काला पानी’ सिर्फ़ एक साहित्यिक कृति ही नहीं अपितु एक समाजशास्त्रीय अध्ययन भी है। पाठक इसे पढ़ते हुए एक अदेखी दुनिया को अपने अनक़रीब पाएँगे।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2006 |
Edition Year | 2023, Ed. 4th |
Pages | 167p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |