Kaifiyat

Author: Kaifi Azmi
Edition: 2019, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹746.25 Regular Price ₹995.00
25% Off
In stock
SKU
Kaifiyat
- +
Share:

अपने समकालीन श्रेष्ठ कवियों में कैफ़ी आज़मी का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। कैफ़ी ने प्रगतिशील उर्दू कविता का माथा बहुत ऊँचा किया है और उसको बहुत शक्तिसम्पन्न बनाया है।

फ़ैज़ की नज़्मों में ग़ज़ल की-सी लाक्षणिकता, शिल्प-लाघव और प्रतीकों के व्यंग्यार्थ मिलते हैं; इसीलिए कुछ और भी, विषम वर्ग संघर्ष झेलनेवालों की कसक, पीड़ा और उम्मीद की चमक...जैसे चिंगारियाँ उड़ती हों...अपनी त्रासदिक मोहिनी से हमें विकल कर देती हैं। या मख़दूम...मख़दूम मुहीउद्दीन का अपना खरा समर्पित व्यक्तित्व अनायास ही हर इन्क़िलाबी का प्रतिनिधि व्यक्तित्व-सा बन जाता है, और तब शायरी की ज़मीन से वह कुछ ऊपर उठ जाता है...शायरी की ज़मीन को भी शायद कुछ ऊपर उठाते हुए।

कैफ़ी का अन्दाज़-ए-बयाँ कुछ और है। इन सबों से न्यारा। वह भावनाओं की पवित्रता, मुहावरे की शुद्धता और भाषा के स्वाभाविक सौन्दर्य और सौष्ठव और इनकी परम्परा की ख़ूबसूरती को बरक़रार रखते हुए, एक आम दर्दमन्द इनसान से एक आम दर्दमन्द इनसान की तरह मिलता है...अपनी कविताओं में...एक जाने-पहचाने रफ़ीक़ और दोस्त की तरह...बिलकुल हमारे दिल की बातों को गुनगुनाते हुए, कुछ हमारे ही दिल के लहज़े में। और सबसे बड़ी बात : उसके पास, इन सारी कैफ़ियत में, एक साफ़ दृष्टि और साफ़-स्पष्ट दिशा है...कि वह हमें कभी नहीं भटका सकता! हम आश्वस्त हैं।

—शमशेर बहादुर सिंह

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2011
Edition Year 2019, Ed. 2nd
Pages 379p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 25 X 16.5 X 3
Write Your Own Review
You're reviewing:Kaifiyat
Your Rating
Kaifi Azmi

Author: Kaifi Azmi

कैफ़ी आज़मी

जन्म : ज़िला आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश) के गाँव मजवाँ में एक शिया ज़मींदार परिवार में। तारीख़ या साल ख़ुद कैफ़ी साहब को याद नहीं था कोई और कैसे बताए! फिर भी, उनकी अपनी तहरीर के बल पर क़यास किया जा सकता है कि वे 1920 के साल-दो साल उधर या इधर पैदा हुए होंगे।

शिक्षा : इलाहाबाद और लखनऊ में हुई। सुल्तानुल-मदारिस, लखनऊ में आपको मौलवी बनाने के लिए भरती कराया गया था, लेकिन आप कुछ और ही बन गए। अफ़सानानिगार आयशा सिद्दीक़ी के शब्दों में, ‘कैफ़ी साहब को वहाँ इसलिए दाख़िल किया गया था कि फ़ातिहा पढ़ना सीखेंगे मगर वहाँ कैफ़ी साहब मज़हब पर फ़ातिहा पढ़कर निकल आए।’

11 साल की उम्र में अपनी पहली ग़ज़ल कही और एक मुशायरे में पढ़ी। उसके बाद से आपका शे’री सफ़र लगातार जारी रहा।

प्रमुख कृतियाँ : ‘झंकार’ (1943), ‘आख़िर-शब’ (1947), ‘आवारा सज्दे’ (1973), 1974 में ‘मेरी आवाज़ सुनो’ (फ़िल्मी गीतों का संकलन) और 1992 में ‘सरमाया’ (प्रतिनिधि रचनाओं का चयन) आदि।

सम्मान : उत्तर प्रदेश उर्दू अकादेमी और साहित्य अकादेमी का पुरस्कार, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, अफ्रो-एशियाई लेखक संघ का ‘लोटस पुरस्कार’, ‘ग़ालिब पुरस्कार’ और हिन्दी अकादमी, दिल्ली का ‘शताब्दी सम्मान’।

निधन : 10 मई, 2002

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top