मैं बारह-तेरह बरस की उम्र से शेर कहने लगा था। मेरा माहौल शायराना था। घर में उर्दू-फ़ारसी के सभी नामवर शायरों के काव्य-संकलन मौजूद थे। ख़ास ख़ास मौक़ों पर घर में क़सीदे की महफ़िलें होती थीं। कभी-कभार तरही मुशायरे भी होते। उस ज़माने में रोज़ ही कुछ न कुछ लिख लिया करता था। कोई नौहा, कोई सलाम, कोई ग़ज़ल। उस ज़माने की सब चीजें अगर समेटकर रखने लायक़ न थीं, तो मिटा देने लायक़ भी नहीं। मुझे उनकी बर्बादी का अफ़सोस भी नहीं है। इसलिए कि उस समय तक..... शायरी की सामाजिक ज़िम्मेदारी से वाक़िफ़ हुआ था, न शेर की अच्छाई-बुराई से। 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के जन्म लेने और उसके असर से पैदा होने वाले अदब ने मुझे बहुत जल्द अपनी पकड़ में ले लिया। मैंने इस नये साहित्यिक आन्दोलन और कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध होकर जो कुछ भी कहा, उनसे मेरे तीन काव्य-संकलन तैयार हुए। प्रस्तुत संकलन देवनागरी लिपि में मेरा पहला प्रकाशन है। यह मेरी कविताओं का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें 'झंकार' की चुनी हुई चीजें भी हैं और 'आखिरे-शब' की भी। 'आवारा सज्दे' मुकम्मल है। मेरी नज़्मों और ग़ज़लों के इस भरपूर संकलन के ज़रिए मेरे दिल की धड़कन उन लोगों तक पहुँचती है, जिनके लिए वह अब तक अजनबी थी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2023, Ed. 5th |
Pages | 224p |
Translator | Zeya Fatima Zaidi |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1.5 |