Awara Sajde

Author: Kaifi Azmi
Translator: Zeya Fatima Zaidi
Edition: 2023, Ed. 5th
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Awara Sajde
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मैं बारह-तेरह बरस की उम्र से शेर कहने लगा था। मेरा माहौल शायराना था। घर में उर्दू-फ़ारसी के सभी नामवर शायरों के काव्य-संकलन मौजूद थे। ख़ास ख़ास मौक़ों पर घर में क़सीदे की महफ़िलें होती थीं। कभी-कभार तरही मुशायरे भी होते। उस ज़माने में रोज़ ही कुछ न कुछ लिख लिया करता था। कोई नौहा, कोई सलाम, कोई ग़ज़ल। उस ज़माने की सब चीजें अगर समेटकर रखने लायक़ न थीं, तो मिटा देने लायक़ भी नहीं। मुझे उनकी बर्बादी का अफ़सोस भी नहीं है। इसलिए कि उस समय तक..... शायरी की सामाजिक ज़िम्मेदारी से वाक़िफ़ हुआ था, न शेर की अच्छाई-बुराई से। 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के जन्म लेने और उसके असर से पैदा होने वाले अदब ने मुझे बहुत जल्द अपनी पकड़ में ले लिया। मैंने इस नये साहित्यिक आन्दोलन और कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध होकर जो कुछ भी कहा, उनसे मेरे तीन काव्य-संकलन तैयार हुए। प्रस्तुत संकलन देवनागरी लिपि में मेरा पहला प्रकाशन है। यह मेरी कविताओं का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें 'झंकार' की चुनी हुई चीजें भी हैं और 'आखिरे-शब' की भी। 'आवारा सज्दे' मुकम्मल है। मेरी नज़्मों और ग़ज़लों के इस भरपूर संकलन के ज़रिए मेरे दिल की धड़कन उन लोगों तक पहुँचती है, जिनके लिए वह अब तक अजनबी थी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2023, Ed. 5th
Pages 224p
Translator Zeya Fatima Zaidi
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Kaifi Azmi

Author: Kaifi Azmi

कैफ़ी आज़मी

जन्म : ज़िला आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश) के गाँव मजवाँ में एक शिया ज़मींदार परिवार में। तारीख़ या साल ख़ुद कैफ़ी साहब को याद नहीं था कोई और कैसे बताए! फिर भी, उनकी अपनी तहरीर के बल पर क़यास किया जा सकता है कि वे 1920 के साल-दो साल उधर या इधर पैदा हुए होंगे।

शिक्षा : इलाहाबाद और लखनऊ में हुई। सुल्तानुल-मदारिस, लखनऊ में आपको मौलवी बनाने के लिए भरती कराया गया था, लेकिन आप कुछ और ही बन गए। अफ़सानानिगार आयशा सिद्दीक़ी के शब्दों में, ‘कैफ़ी साहब को वहाँ इसलिए दाख़िल किया गया था कि फ़ातिहा पढ़ना सीखेंगे मगर वहाँ कैफ़ी साहब मज़हब पर फ़ातिहा पढ़कर निकल आए।’

11 साल की उम्र में अपनी पहली ग़ज़ल कही और एक मुशायरे में पढ़ी। उसके बाद से आपका शे’री सफ़र लगातार जारी रहा।

प्रमुख कृतियाँ : ‘झंकार’ (1943), ‘आख़िर-शब’ (1947), ‘आवारा सज्दे’ (1973), 1974 में ‘मेरी आवाज़ सुनो’ (फ़िल्मी गीतों का संकलन) और 1992 में ‘सरमाया’ (प्रतिनिधि रचनाओं का चयन) आदि।

सम्मान : उत्तर प्रदेश उर्दू अकादेमी और साहित्य अकादेमी का पुरस्कार, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, अफ्रो-एशियाई लेखक संघ का ‘लोटस पुरस्कार’, ‘ग़ालिब पुरस्कार’ और हिन्दी अकादमी, दिल्ली का ‘शताब्दी सम्मान’।

निधन : 10 मई, 2002

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